मड़ई का नया अंक आ चुका है। (मड़ई-2009) मड़ई के संपादक डॉ कालीचरण यादव हैं। जो वर्षों से लोक कला के उत्थान के लिए समर्पित भाव से कार्य कर रहे हैं।
मैं डॉ कालीचरण यादव जी को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती हूं परन्तु मुझे यह पत्रिका इतनी प्रभावी और मुकम्मल लगती है कि मैं इसे अपने छोटे से ब्लाग के माध्यम से आपलोगों की जानकारी में भी देना चाहती हूं। वैसे लोक और साहित्य की दुनिया में यह पत्रिका काफी चर्चित है। मुझे उम्मीद है कि कालीचरण जी को मेरी यह हिमाकत बुरी नहीं लगेगी।
Monday, August 2, 2010
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Aangan me Tulsi Chaura (एंगना मॅ तुलसी चौरा)
दुनिया के सब आपाधापी सॅ थकी क जबS दिन दुपहरिया घोर जाय छेलियै त एंगना मॅ तुलसी के लहलहैलो पौधा देखी क जी जुड़ाय जाय छेलै। जहिया सॅ महानगर ...
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पिछले पोस्ट में मैंने दो उपनयन गीत डाला था, कमेंट के माध्यम से भी और ईमेल के जरिए भी इन गीतो को सरल भाषा में प्रस्तुत करने का सुझाव मिला था,...
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उचित समय पर वर नहीं मिल रहा हो, तो लड़की का विवाह फूलों के गुच्छे को वर के स्थान पर रखकर कर दिया जाता है। गुजरात तथा झारखंड के कुछ हिस्सों म...
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झारखंड के आदिवासी समाज में कथा वाचन की परंपरा अब भी बनी हुई है। यहाँ पर पुरानी पीढी के लोग आज भी अपने बच्चो को कथा कहानी सुनाते हुए देखे जात...
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