उचित समय पर वर नहीं मिल रहा हो, तो लड़की का विवाह फूलों के गुच्छे को वर के स्थान पर रखकर कर दिया जाता है। गुजरात तथा झारखंड के कुछ हिस्सों में पहले वृक्ष विवाह किया जाता है। इनमें वर का विवाह पहले आम के पेड़ से होता है तथा कन्या का विवाह महुए के पेड़ से होता है।
पुष्प विवाह- गुजरात में कुनबी आदिवासियों में पुष्प विवाह की प्रथाएं प्रचलित हैं। यहां लड़की का विवाह पहले पुष्पों से किया जाता है। विवाह योग्य कन्या को यदि उचित समय पर वर नहीं मिल रहा हो, तो लड़की का विवाह फूलों के गुच्छे को वर के स्थान पर रखकर कर दिया जाता है। फिर विधि विधान से उस गुच्छे को किसी जलाशय में डाल दिया जाता है। इस रिवाज के बाद लड़की को सदा सुहागन माना जाता है। बाद में जब कभी वर मिल जाता है तो लड़की का विवाह कर दिया जाता है। यदि उस लड़की का वर कभी मर भी जाता है तो भी उसे विधवा नहीं माना जाता है क्योंकि सदा सुहागन तो वह पहले ही हो चुकी है।
आम और महुए से विवाहः- गुजरात तथा झारखंड के कुछ हिस्सों में कुरमी जातियों में पहले वृक्ष विवाह किया जाता है। इनमें वर का विवाह पहले आम के पेड़ से होता है तथा कन्या का विवाह महुए के पेड़ से होता है। विवाह के समय लड़के को दृक्ष के समीप खड़ा कर दिया जाता है उसके बाद लड़के तथा वृक्ष को सूत से बांध दिया जाता है। बाद में पत्तों से बनी माला वर के गले में डालकर वर को वृक्ष से मुक्त किया जाता है। वृक्ष से मुक्त होकर वर पेड़ पर सिन्दूर के टीके लगाता है। दूसरी ओर कन्या का विवाह भी महुए के पेड़ के साथ कर दिया जाता है। इसके बाद हीं लड़के -लड़की का विवाह किया जाता है।
इही संस्कार विवाह- पड़ोसी देश नेपाल में नेवार जाति है। नेवार जाति में लड़की का विवाह पहले किसी आदमी से नहीं किया जाता है बल्कि भगवान नारायण की प्रतिमा से होता है। इस विवाह को सुवर्ण विवाह, प्रतिमा विवाह या इही कहा जाता है। इस विवाह में लड़की की उम्र 5 से 8 होती है। यानि युवावस्था आने से पूर्व यह संस्कार पूरा किया जाता है। नेवार जाति में इही संस्कार बड़ा ही पवित्र माना जाता है। और इसको देखने के लिए बहुत बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं।
आक विवाह- उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में ब्राह्मणों का आक से विवाह की प्रथा प्रचलित है। यदि किसी पुरुष की मृत्यु हो जाती है और वह दूसरा विवाह करना चाहता है। तब उसका विवाह पहले आक के पौधों से किया जाता है। लोग वर को निवास स्थान से दूर खेतों के बीच जन्में आक के पौधे के पास ले जाते हैं। पौधे के पास ही विवाह की वेदी बनाई जाती है वहाँ विवाह सम्पन्न होता है। लोगों का ऐसा कहना है कि आक से विवाह होने के थोड़े दिन बाद लड़के का विवाह लड़की से कर दिया जाता है।
-प्रीतिमा वत्स
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परंपराओं के पीछे सामाजिक कारण होते हैं। यदि उन का उल्लेख भी साथ किया जाता तो यह आलेख एक संग्रहणीय होता।
ReplyDeleteसभी परंपराओं के पीछे कुछ मान्यताऐं हैं..अच्छा आलेख!!
ReplyDeletebahut hi achhi jankari pratimaji. badhai. ek nayee prampra ke bare main padkar achha laga saath hi ascharya bhi hua ki ladki ka vivah pedon se bhi karte hain.
ReplyDeletekabhi mere blog(meridayari.blogspot.com)par bhi aayen
बहुत खूब लिखती हैं आप, www.videha.co.in/ पर आयें, यहाँ आपकी रुचि के अनुसार ढ़ेर सारी सामग्री हर पक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
ReplyDeleteप्रतिमा जी आगमन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ | आप का विविध ' टोटका विवाह ' वर्णन अच्छा लगा यहाँ पर मैं श्री दिनेश जी से सहमत हूँ ,|हर सामाजिक प्रथा के पीछे कोई न कोई कारण होता है ,इसप्रकार के विवाह इधर यू .पी .. में भी होते है | ज्यादा तर इस प्रकार के विवाह ''ज्योतिषीय 'दोषों के निवारण हेत किए जाते हैं और हार विरादरी [ जाती ] अपनी सामाजिक -व्यवसायिक प्राथमिकताओं क आधार पर तथा अपनी व्यवसायिक प्रतिबधता के आधार पर ही वृक्षों , का निर्धारण किया जाता है | रही आक वृक्ष की बात इसे ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों वर्णों का वृक्ष मानत हैं | सूर्य पूजन में इसकी समिधा का प्रयोग होता है |
ReplyDeleteachchha laga !
ReplyDeleteAak Vivah ka mehaTva Bhi bTaynge kYa ??
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