सावन-भादो के महीने में धान की रोपाई खेतों में होती है। यह कार्य मुख्यतः महिलाएं करती हैं। घुटने भर पानी में घंटों रहकर रोपाई का काम बहुत ही कठिन होता है लेकिन महिलाएं इसे सरस बनाती हैं शायद गीतों के माध्यम से। बहुत हीं सरस और मधुर होते हैं ये गीत जो समवेत स्वर में गाये जाते हैं। इन गीतों के कुछ छंद यहां मौजूद हैं-
1 हाथ के लेल गे रेशमा
बांस के चंगेरिया गे
चली भेल कोईरिया फुलवरिया
एक कोस गेले गे रेशमा दूही कोस गेले
तीसरी कोस कोईरिया फुलवरिया गे।
पहेरी लेले गे रेशमा
धानी रंग चुनरिया गे
जली भेल कोईरिया फुलवरिया गे।।
हाथ में बांस की डलिया लिए हुए रेशमा कोयरी (खेतिहर जाति) के फुलवारी की ओर जा रही है। रेशमा एक कोस गई, दूसरा कोस भी पार कर लिया और तिसरे कोस में कोयरी का फुलवारी मिल गया। रेशमा धानी रंग की चुनरी पहनकर कोइरी के फुलवारी की ओर गई है।
2. सातों ही भैया के एके बहनिया अझोला
सातों भैया गेलो बनीजवा रे भैया,बनीजवा रे भैया।
सातों लाए, भौजो लाए सातो रंग चोलिया
से चंदो लाए लाहरी पटोरबा देबै
चंदो लाए गज मोती हरबा रे देबै।
सातों ही भैया के एके बहनिया अझोला।।
सात भाईयों की सिर्फ एक बहन है अझोला। सातों भाई परदेश गए हैं काम करने के लिए। लौटते हुए सभी अपनी-अपनी पत्नियों के लिए सौगात के रूप में सात रंगों वाली चोली लेकर आए हैं, परन्तु अझोला के लिए वे लोग लहंगा-पटोरी(लहंगा-चूनरी) लेकर आए हैं।
3. एके रे कोठरिया में दोनों रे सौतीनियां
दोनों रे सौतीनियां
दोनों मिली करल झगड़ा रे साम्भरिया
किनका क मारल, किनका गरियाएल,
किनका क हृदय लगावल हे साम्भरिया।।
एक ही कमरे में दो सौतनें अपने पति के साथ रहती हैं। दोनों आपस में झगड़ती रहती हैं। पति किसे मारता है और किसे हृदय से लगाता है? यह बड़े उत्सुकता की बात है।
4. उत्तर-दक्खिन स ऐलै चूड़ी दरबा
बैठी ही गेलै चूड़ीदार बीच ही एंगनमा
बैठी ही गेलै चूड़ीदार बीच ही एंगनमा।
मचिया बैठली तोहूं सासू ठकुरैनिया
पसीन करो न सासू, हरे-हरे चूड़िया।।
उत्तर-दक्षिण दिशाओं से चूड़ी बेचनेवाला आया है। वह आंगन में अपने चूड़ियों को बिछाकर बैठ गया है। सासू ठाकुरानी जी मचिया पर बैठी चुड़ीयां देख रही है। बहू सास से कहती है,- कृपया हरे-हरे रंग की चूड़ियां पसंद करो ना सासू जी।
-प्रीतिमा वत्स
फोटोग्राफ- राजेश त्रिपाठी
अपनी संस्कृति की अच्छी याद दिलाई आप ने बधाई
ReplyDeleteबेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...
ReplyDeleteआज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
मुझ जैसे, बाज़ार से थैली में चावल ख़रीदने वाले लोगों के लिए खेतीहर के गाए जाने वाले गीत नई जानकारी हैं. धन्यवाद.
ReplyDeleteब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteNICE POST .
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ में खेतों में बुवाई के समय ऐसे समूह गीतों को सुनने का अवसर मिला है. कर्णप्रिय लगा परन्तु अर्थ नहीं मालूम था. आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteऐसे गीत गांवो में सुनने मिल जाते हैं आज भी..बहुत उत्तम पोस्ट.
ReplyDeleteNever before, Pri G " Hamro man karai cho aapne se jaroor bhet karlo jaay. hamme aapne ke batayn day chiyon ki Hamro Ghar Daliya, Bounsi, Chiko"
ReplyDeleteNow a days I M S/W Engg. in Jaipur (Rajasthan)
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