Thursday, May 7, 2009
आज भी गाये जाते हैं प्रभाती
सुबह के समय गाये जानेवाले गीतों को प्रभाती कहा जाता है। इन लोकगीतों में अधिकांशतः प्रभू स्मरण ही किया जाता है। अंग जनपद में खासकर गंगा नदी के किनारे के इलाके में जो प्रभाती गाये जाते हैं उनमें गंगा ही प्रायः अराध्य होती हैं। कवि विद्यापति के जीवनी को पढ़ने से पता चलता है कि उनके जीवन में भी प्रभाती गीतों का विशेष महत्व था। उनके गाये कुछ गीत प्रभाती गीत ही प्रतीत होते हैं। आज भी कभी-कभी सुनने को मिल ही जाते हैं प्रभाती गीत।
1.
कथी केरो कंघई हे गंगा मइया,
कथी केरो काम।
कथी बैठली गंगा मइया
चिरै लम्बी हे केश।
सोना केरो कंघई मइया हे रूपे केरो काम
मचिया बैठली हे गंगा मइया चिरै लम्बी केश
2.
बहे पुरबैया हे मइया, है डोले हे सेमार
झट दाये हे मलहा, पार देहो हे उतार
टूटली नैया हे मइया,टूटली पतवार
कैसे काए उतरब मैया सातो नदी है पार
सोने देबो नैया रे मलहा रूपे पतियाल
झिंझरी खेलतैं मलहा, पार देहो हे उतार
बहे पुरबैया हे मइया, है डोले हे सेमार
नैया खेबू नैया खेबू रे झिमला मलाहा
हमू जे कुमारी झिमला पारो देहो हे उतार
कहाँ तोरो घर हे गंगा माय, किय तोरो नाम
बतिया बिचारो गंगा मइया
समुन्दर होयबो हे पार
3.
ऐसन खिड़की कटैहियो हे गंगा मइया
वै खिड़की सचवा उतरत पार।।
नैहरा के प्यारी दुलारी हे गंगा मैया
ससुरा में कईस काटती दिन,
ऐसन बोलिया बोलियोह हे गंगा माय
वै बोलिया होइतो सलख के मान।।
किरपा करिहों भगता पर हे गंगा मैया
हमें होइब निहाल।
ऐसन खिड़की कटैहियो हे गंगा मइया
वै खिड़की सचवा उतरत हे पार।।
-प्रीतिमा वत्स
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sunder picture aur lokgeet
ReplyDeleteये प्रभातियां पढ कर मन प्रसन्न हो गया। इस ज्ञानवर्द्धकपोस्ट के लिए हार्दिक आभार।
ReplyDelete-----------
SBAI TSALIIM
प्रभातियां पढ़ कर दिल खुश हो गया ..बहुत बढ़िया लगता है यह ब्लाग .शुक्रिया
ReplyDeleteआभार-अच्छा लगा और जानकारी मिली.
ReplyDeleteLok jivan par jaankari se bhara hai aapka yeh Blog.
ReplyDeleteJust now I shared the link of this page of your blog on Facebook. Thanks for the beautiful songs.
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