Saturday, April 18, 2009

बासी भात

चैत पूर्णिमा की रात और बैशाख की सुबह झारखंड और बिहार के अधिकांश इलाकों में बासी भात के नाम से प्रसिद्ध है। यह पर्व मुख्यतः गोड्डा,भागलपुर,बांका,दुमका ,देवघर,दरभंगा आदि जिले के गांवों में आज भी बड़े उत्सव के साथ मनाया जाता है।
चैत पूर्णिमा की रात को घर की महिलाएँ अपने रसोई घर की अच्छी तरह से सफाई करके सोती हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि कोई जूठा या बचा हुआ खाना न रह जाए। रात के दो से तीन बजे के बीच औरतें उठकर अपना चौका चूल्हा संभाल लेती हैं। दूसरे दिन खाया जानेवाला पूरा खाना उसी समय बना लिया जाता है। इस खाने में तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। सुबह होने से पहले ही औरतें अपने रसोई का काम खत्म करके सो जाती हैं।
बड़े जोर-शोर से सुबह घर की सफाई की जाती है। फिर तुलसी के पौधे के ऊपर एक घड़ा लटकाया जाता है। जिसमें नीचे एक छेद होता है। इस छेद से बूंद-बूंद पानी टपकता रहता है। यह घड़ा पूरे बैशाख भर लटका रहता है। रोज सुबह घर के हर आदमी नहा-धोकर इस घड़े में जल डालते हैं। जिससे पूरे महीने पौधा हरा रहता है।
उस दिन जौ के सत्तु,गुड़, कच्चे आम, और दही से भगवान विष्णु तथा तुलसी जी की पूजा की जाती है। इसके बाद आधी रात को बना हुआ खाना भगवान तथा पितरों को भोग लगाया जाता है। फिर वही खाना सारा दिन घर के सब लोग खाते हैं। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है।
इस पर्व को मनाने के पीछे शायद यह कामना रही हो कि बैशाख से शुरू होनेवाले प्रचंड गर्मी में भगवान घड़े के बूंद-बूंद टपकते पानी की तरह शीतलता बनाए रखें। घर में चूल्हा शायद इसलिए भी नहीं जलाया जाता है कि इस चिलचिलाती धूप में धरती माँ को थोड़ी सी तो राहत महसूस हो।
-प्रीतिमा वत्स

6 comments:

  1. pratima ji aapne basi bhat ka yah samachar suna kr mere bachpan ke yado ko taja kr diya

    bachpn me hum bhi khub basi baht khaya karte the lekin abto wo moka hi nahi milt ki kisi din basi bhat khau

    undino wo khane ka maja hi kuchh aur tha

    aapne kbhi basi bhat khaya hai???

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  2. pratima ji jaisa ki maine aapka profile pada usse gyat hita hai ki aap hamare hi profesion se hai yani aap bhi patrakar hai.
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  3. अपनी संस्कृति की याद दिलाने के लिए आभार। सचमुच बासी भात को तो हमलोग भूल ही चुके हैं। मिथिलांचल में इसे "जुड़ शीतल" के नाम से जाना जाता है और घड़ा दान करके पूरे बैशाख प्रतिदिन प्यासे को पानी पिलाने का भी रिवाज है

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
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  4. कभी-कभी बासी भात भी अच्छा लगता है।
    इस त्योहार की स्मृतियाँ
    ताजा कराने के लिए आभार।

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  5. मिट्टी से जुडी बाते अच्छी लगती है.
    लगता है आप लोक चेतना से भली भांति जुडी है.

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  6. Aap ko main kaise, Kitana, Dhanyad deta rahoo,

    Aap ki tarah kisi bhi Angika Writer se mujhe itni satik jankari nahi mili.

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