चैत पूर्णिमा की रात और बैशाख की सुबह झारखंड और बिहार के अधिकांश इलाकों में बासी भात के नाम से प्रसिद्ध है। यह पर्व मुख्यतः गोड्डा,भागलपुर,बांका,दुमका ,देवघर,दरभंगा आदि जिले के गांवों में आज भी बड़े उत्सव के साथ मनाया जाता है।
चैत पूर्णिमा की रात को घर की महिलाएँ अपने रसोई घर की अच्छी तरह से सफाई करके सोती हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि कोई जूठा या बचा हुआ खाना न रह जाए। रात के दो से तीन बजे के बीच औरतें उठकर अपना चौका चूल्हा संभाल लेती हैं। दूसरे दिन खाया जानेवाला पूरा खाना उसी समय बना लिया जाता है। इस खाने में तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। सुबह होने से पहले ही औरतें अपने रसोई का काम खत्म करके सो जाती हैं।
बड़े जोर-शोर से सुबह घर की सफाई की जाती है। फिर तुलसी के पौधे के ऊपर एक घड़ा लटकाया जाता है। जिसमें नीचे एक छेद होता है। इस छेद से बूंद-बूंद पानी टपकता रहता है। यह घड़ा पूरे बैशाख भर लटका रहता है। रोज सुबह घर के हर आदमी नहा-धोकर इस घड़े में जल डालते हैं। जिससे पूरे महीने पौधा हरा रहता है।
उस दिन जौ के सत्तु,गुड़, कच्चे आम, और दही से भगवान विष्णु तथा तुलसी जी की पूजा की जाती है। इसके बाद आधी रात को बना हुआ खाना भगवान तथा पितरों को भोग लगाया जाता है। फिर वही खाना सारा दिन घर के सब लोग खाते हैं। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है।
इस पर्व को मनाने के पीछे शायद यह कामना रही हो कि बैशाख से शुरू होनेवाले प्रचंड गर्मी में भगवान घड़े के बूंद-बूंद टपकते पानी की तरह शीतलता बनाए रखें। घर में चूल्हा शायद इसलिए भी नहीं जलाया जाता है कि इस चिलचिलाती धूप में धरती माँ को थोड़ी सी तो राहत महसूस हो।
-प्रीतिमा वत्स
Saturday, April 18, 2009
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pratima ji aapne basi bhat ka yah samachar suna kr mere bachpan ke yado ko taja kr diya
ReplyDeletebachpn me hum bhi khub basi baht khaya karte the lekin abto wo moka hi nahi milt ki kisi din basi bhat khau
undino wo khane ka maja hi kuchh aur tha
aapne kbhi basi bhat khaya hai???
pratima ji jaisa ki maine aapka profile pada usse gyat hita hai ki aap hamare hi profesion se hai yani aap bhi patrakar hai.
ReplyDeleteaur web duniya ka pryog karti hai
humne ek news web portal suru kiya hai aur mai chahta hu ki aap bhi usme likh kar sahyog pradan kare
www.indianglobenews.com
अपनी संस्कृति की याद दिलाने के लिए आभार। सचमुच बासी भात को तो हमलोग भूल ही चुके हैं। मिथिलांचल में इसे "जुड़ शीतल" के नाम से जाना जाता है और घड़ा दान करके पूरे बैशाख प्रतिदिन प्यासे को पानी पिलाने का भी रिवाज है
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
कभी-कभी बासी भात भी अच्छा लगता है।
ReplyDeleteइस त्योहार की स्मृतियाँ
ताजा कराने के लिए आभार।
मिट्टी से जुडी बाते अच्छी लगती है.
ReplyDeleteलगता है आप लोक चेतना से भली भांति जुडी है.
Aap ko main kaise, Kitana, Dhanyad deta rahoo,
ReplyDeleteAap ki tarah kisi bhi Angika Writer se mujhe itni satik jankari nahi mili.