चैती एक खास तरह का गीत है जिसे चैत के महीने में गाया जाता है। इन गीतों में मुख्य रूप से भगवान राम का स्मरण किया जाता है। झारखंड के गोड्डा जिले में रहनेवाले कंचन महतो का कहना है, चैत के महीने में तो सिर्फ राम के लिए ही चित्त चंचल होता है। उनके सुर आज भी चैत की रातों सजाते हैं।
लखी रे लखी बारै ललनमा हो रामा
अखिया सुफल भई, अखिया सुफल भई।
ऐसो सुन्दर ललनमा के देखी
लखी रे लखी बारै ललनमा हो रामा।।
घुंघराली काली-काली लुटरिया
शोभित कमल नयनमा हो रामा
अखिया सुफल भई, अखिया सुफल भई।
लखी रे लखी बारै ललनमा हो रामाअखिया सुफल भई,अखिया सुफल भई।।
इस चैती गीत में रामचंद्र जी की सुन्दरता का वर्णन किया गया है। उनकी घुंघराली काली लटें, उनके सुंदर नयन जो कमल की तरह खिले हुए लगते हैं। जिन्हे देखकर आंखे सफल हो गई।
बाजत आनंद बधैया हो रामा।
ऐलै चैत का महीनवा हो रामा
बाजत आनंद बधैया हो रामा।
राजा दशरथ के चार पुत्र भई
श्याम घोर छवि छैया हो रामा।
बाजत आनंद बधैया हो रामा।।
इन गीतो में भगवान रामचंद्र जी के जन्म उत्सव का वर्णन किया गया है।
-प्रीतिमा वत्स
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कभी सुना तो है चैती गायन!!
ReplyDeleteहम लोंगों के यहाँ अभी लोक संस्कृति जिन्दा है .हमारे गाँव में चैता और चौताल की तो धूम ही मची है .
ReplyDeleteनाम सुना है .पढ़ा जाना आपकी पोस्ट से शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत खींच कर गाया जाता है ये गीत और इसके उतार चढ़ाव बहुत अच्छे लगते हैं गाने वाले को भी और सुनने वाले को भी..!
ReplyDeleteदिलचस्प !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगता है यह गीत सुनने में ... गांवों तो फागुन महीने से ही चैती के गाने श्ुरू हो जाते हैं ... कई जगहों पर इसे चैतावर भी कहा जाता है।
ReplyDeleteआज पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर. बहुत प्रसन्नता हुई. हिंदी के सबसे अच्छे ब्लाग्स में से एक ब्लॉग से परिचय हुआ.
ReplyDeleteपहली बार आए इस ठौर ।
ReplyDeleteऑडियो भी लगाएं तो मज़ा आयेगा और ।
Ab kahan Jhadkhand mein Chaiti! Besure filmi gaanon ne Raamnavmi ke sur bhi bigad diye hain. Aap jaise chand logon ke blogs tak hi na simat jaye ye Dharohar.
ReplyDeletehaan suna hai....padha hai....gaya bhi hai.....aapka blog adbhut rachnaadharmi hai..........!!
ReplyDeleteहमारी आत्मा लोकगीतो मे बसती है|ये गीत हमे हमारी संस्कृति के साथ ही देश काल व वातावरण से भी रूबरू करातेहै|आप सबका ब्लाग पढकरअच्छा लगा|
ReplyDeleteशुरुआत की है..पर शुरुआत ही इतनी मनभावन है, की लोकगीतों में रम जाने की इच्छा है।
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