Saturday, March 14, 2009

देवगुड़ी में धरतीपूजा


जिस दिन देवगुड़ी में हल चलाया जाता है उस दिन पूरे गांव में हल चलाने की मनाही होती है, तथा दूसरे दिन से धान की बोआई शुरु हो जाती है।

छत्तीसगढ़ के करीब-करीब सभी इलाकों में चैत के महीने में धरती माँ की पूजा बड़े ही धूमधाम से की जाती है।इस पर्व को यहाँ माटी तिहार के नाम से जाना जाता है।
पर्व के दिन सुबह-सवेरे नहा-धोकर पुजारी देव गुड़ी(देव मंदिर) में जा पहुँचता है। पुजारी दिनभर का उपवास रखता है। गाँवभर के सभी पुरुष अपने हाथों में सिंयाड़ी के पत्ते के दोने में धान भरकर देवगुड़ी में जमा होते हैं। फिर वे अपने-अपने दोने देवी माँ के चरणों में अर्पित कर देते हैं। देवगुड़ी के पास हीं एक लम्बा-चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है, लेकिन इस गड्ढे की मिट्टी निकाली नहीं जाती है। कुछ आदमी हल लेकर इस गड्ढे की गुड़ाई करते हैं। इस हल में बैलों की जगह आदमी जुते रहते हैं। इस रस्म के बाद उस गड्ढे में ढेर सारा पानी डालकर छोड़ दिया जाता है। तब पुजारी इनमें धान बोता है।धान बोये जाने के बाद सभी लोग इकट्ठे होकर देवी माँ,धान और पुजारी की पूजा करते हैं।पूजा के बाद सबलोग मंदिर में ही बना हुआ खाना खाते हैं। खाना खाने के बाद पुनः सब उस गड्ढे के पास इकट्ठे हो जाते हैं, और एक-दूसरे को कीचड़ में घसीट-घसीटकर खूब खेलते हैं। एक दूसरे के ऊपर कीचड़ लगाते हैं और अपने-अपने घर आ जाते हैं।
दूसरे दिन पुजारी के घर पर खाना-पीना होता है, तथा रात्रिजागरण भी किया जाता है।

यद्यपि यह पर्व काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन इस पर्व में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होता है।
माटी तिहार का पर्व यूँ तो छत्तीसगढ़ के करीब-करीब सभी इलाके में मनाया जाता है लेकिन पर्व मनाने के तरीकों में थोड़ी बहुत भिन्नता पाई जाती है। कहीं-कहीं पर डाही जलाने (बुरी नजर से बचाने) की प्रथा भी है।
-प्रीतिमा वत्स

2 comments:

  1. बिल्कुल नई जानकारी दी है। धन्यवाद।
    घुघूती बासूती

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  2. अच्छा लगा इस परम्परा के बारे में जान कर. वैसे धरती पूजन की परम्परा हर संस्कृति में किसी न किसी रूप में है.

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