
लोक मान्यता हैं,ठाकरान(आदिदेवी) की हंसली हड्डी (गले की हड्डी) के मैल से बने हांस-हांसिल (हंस-हंसिनी) पक्षियों ने विशाल जल-राशि पर तैरते हुए बिरना (खस घास) के झाड़ में अपना घोंसला बनाया था जहां हांसिल (हंसिनी) ने दो अंडे दिए थे, जिनसे दो मानव शिशु उत्पन्न हुए थे। तब, ठाकुर जिउ (सृष्टिकर्ता) को चिंता हुई कि उन दोनों मानव -शिशुओं के आहार की व्यवस्था की जाए।
उस समय स्वर्गपुरी में आइनी-बाइनी कपिला गाएं थीं। ठाकुर जिउ ने मारांग बुरू (महादेव) को अपने पास बुलाकर कहा कि उन गौओं को पृथ्वी पर ले जाएं। मारांग बुरू स्वर्ग पुरी में ही रहते थे, परंतु वे पृथ्वी पर तोड़े सुताम (काल्पनिक तंतु) के सहारे आसानी से आ-जा सकते थे।
ठाकुर जिउ के आदेशानुसार, मारांग बुरू बहुत अनुनय-विनय करके नर-मादा आइनी-बाइनी कपिला गौओं को पृथ्वी पर ले आए और उन्हें जंगल में रखा। साथ ही, पृथ्वी पर मारांग बुरू ने मड़ुआ,सावां आदि कुछ मोटे अनाजों के बीज जहां-तहां छींट दिए। कालक्रम में प्रथम मानव -दंपत्ति, पिलचू हाड़ाम-पिलचू बूढ़ी तथा कपिला गौओं की वंश-वृद्धि हो गई। मानव-संतानें बाकुक नाहेल (हाथों से चलाने वाले हल) से जमीन जोतकर अनाज उपजाना सीख चुकी थीं। उस पर मारांग बुरू ने उनलोगों से कहा, अपने हाथों से कबतक हल जोतते रहोगे ? जाओ, जंगल से नर-मादा कपिला गौओं को ले आओ। उनमें से नर-गौओं(बैलों) से हल चलाया करना और मादा-गौओं(गायों) के दूध खाया-पीया करना।

कहते हैं, सोहराय पर्व का आरंभ उसी दिन से हुआ है। उस पर्व का पहला दिन गोट पूजा का दूसरा दिन गोहाल पूजा का तीसरा दिन खुण्टाउ (बैल खूंटने) का, चौथा दिन जाले का और पांचवां दिन बेझा तुंग का दिन कहलाता है। तब से यह पर्व हर साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। संताल परगना में यह पर्व मकर-संक्रांति के ठीक पहले मनाया जाता है जबकि दक्षिण बिहार,उड़ीसा आदि में दीपावली के अवसर पर मनाया जाता है।
-प्रीतिमा वत्स
रोचक लगा यह जानना ..पहली बार इस के बारे में जाना ..शुक्रिया
ReplyDeleteजानकारी अच्छी लगी ... आभार।
ReplyDeleteकृपया निम्नांकित लिंक देखें
ReplyDeletewww.krraman.blogspot.com
Very good
ReplyDelete