Wednesday, May 5, 2010

जंतसार


आज की रेडी टू इट वाली जिन्दगी में भले ही यह अटपटा लगता है, लेकिन कुछ दशक पहले तक गांव की औरतों की जिन्दगी काफी मेहनत मशक्कत करने वाली थी। घर लीपने से लेकर अनाज तैयार करने तक का सारा काम घर की स्त्रियों के जिम्मे हीं होता था। ऐसे में अपनी थकावट दूर करने तथा मन की व्यथा को कुछ हद तक गीतों के माध्यम से निकालती थीं। इन गीतों में अक्सर घरेलू जीवन के संघर्ष तथा सामाजिक समस्याओं का जिक्र होता था। यह बात अलग है कि शारीरिक श्रम उनके स्वास्थ्य के लिए काफी हद तक फायदेमंद ही साबित होता था। चक्की पीसना इन कामों में एक बहुत ही महत्वपूर्ण काम था। इसे वह अक्सर दोपहर के समय जब घर के सभी लोग आराम कर रहे होते करती थी। काम के साथ जो गीत वह गाती रहती थीं उन्हें जंतसार कहा जाता है। प्रायः इन गीतों को अकेले हीं गाया जाता था। अब तो इन गीतों को गानेवाले भी विरले हीं मिलते हैं -

1. पूरबा जे बहले हना हनी हे दियोरे
पच्छिया जे बहल अंधकार।।
एंगना में कुइंया खनाय देहो हो दियोरे
बांटी देहो रेशम के डोर
पूरबा जे बहले हना हनी हे दियोरे
पच्छिया जे बहल अंधकार।।
चैत बैशाख के धूपवा बड़ी तेज
एंगना में चंदोवा लागय देहो हो दियोरे
जरत नरमियो मोर गोड़
पूरबा जे बहले हना हनी हे दियोरे
पच्छिया जे बहल अंधकार।।

अर्थ- इस गीत में भाभी अपने देवर से अपनी समस्याओं के बारे में बता रही है। पूरब की हवा बहुत तेज रफ्तार से बहती है और जब पछिया हवा बहती है तो अंधकार छा जाता है। पानी लाने के लिए दूर जाती हूं तो परेशान हो जाती हूं। आंगन में ही आप एक कुआं खुदवा दो और साथ में रेशम की डोरी भी ला दो। चैत-बैशाख के महीने में जब कड़ाके ही धूप पड़ती है तो मेरे पांव गर्मी से छिल जाते हैं।आप आंगन में चंदोवा लगवा दो जिससे कि मैं आराम से घर के सारे काम निबटा सकूं।

2. पनमा जे खैले डोमनिया गे
मिसिया जे लगोले निसिया सुरतिया
डोमिन गे राजा के बेटा लुभावल
जेहूं तोहं राजा-बेटा हे निसिया हे लुभैयले
पनमा काहे खैले डोमनिया गे
मिसिया काहे लगौले निसिया सुरतिया
डोमिन गे राजा के बेटा लुभावल

अर्थ- इस गीत में डोम जाति की एक लड़की की चर्चा की गई है। सांवली सूरत पर काजल लगाकर पान खाकर जब वह निकलती है तो उस नगर का राजकुमार भी उसके सौन्दर्य पर आकर्षित हो जाता है। गीतो के माध्यम से ही डोमिन की बेटी से पूछा जाता है कि तुमने ये कैसा कहर कर दिया । आंखों में काजल लगाकर,पान खाकर क्यों निकली।

3. रैयो खेत में रैया हे
मसूरियो खेत में हेरैले रे ना
सासू बेसरी हे हेरैले ना
एतना हे सुनिये सासू
उठली रिसैली रे ना।
हंसुली खोजी अइहैं न त
कलेवा नाहीं दियवो रे ना।

अर्थ- इस गीत में गाने वाली खुद अपनी आपबीती सुना रही है। सरसों के खेत में सरसों लगा हुआ था, और मसूर के खेत में मसूर। मैं तो बस घास छीलने गई हुई थी। वहीं पर मेरी हंसुली न जाने कहां खो गई। सास ने जब यह बात सुनी तो काफी नाराज हो गई और कहने लगी, जाओ और हंसुली खोजकर लाओ, जब तक हंसुली लेकर नहीं आती तुम्हें खाना नहीं मिलेगा।

-प्रीतिमा वत्स

2 comments:

  1. इस लोकगीत के दूसरे पद की रोचक कथा है कि कैसे प्रथम शातब्दी ई. सा. पूर्व में वज्रयानी साधको में डोम कन्या भैरवी हुआ करती थी और कैसे डोमकटर उप- जाति बनी.
    देखिये अगर इस प्रकार के लोक-जनसूचना का संग्रह न हो तो पुरातात्विक सामग्री से प्राप्त कलात्मक रचनाओं कि व्याख्या कर पाना मुश्किल होता.
    इसी संग्रह को और विस्तृत कीजिये प्रीतिमा जी.

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  2. रोचक जानकारी...

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