संताली लोक समाज में शराब के निर्माण को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा है। कल्पनाओं पर आधारित होते हुए भी यह बहुत हीं मनोरंजक और शिक्षाप्रद है।
पुराने जमाने की बात है। एक बार एक आदमी एक पीपल के पेड़ के नीचे शराब बनाने बैठा। उसके लिए उसने चूल्हा सुलगाया। उस पर महुए की हांड़ी चढ़ाई और आंच देने लगा। परंतु, बहुत देर तक आंच देते रहने पर भी एक बूंद भी शराव नहीं निकली। उससे हैरान हो वह एक ओझा (तांत्रिक) के पास गया और उससे बोला, बाबा, मैंने अमुक पेड़ के नीचे शराब चुलाने के लिए चूल्हा जलाया है, परंतु लाख कोशिश करने पर भी एक बूंद भी शराब नहीं निकाल पा रहा हूं। कृपा करके मुझे बताएं कि मैं क्या करूं जिससे शराब निकाल सकूं।
उस ओझा बाबा ने उसे बताया, तुम जिस पेड़ के नीचे शराब चुवा रहे हो उसी पेड़ को काटकर चूल्हे में झोंक दो। फिर, देखोगे कि इतनी आधिक शराब चूने लगेगी कि तुम्हें शराब रखने की जगह तक नहीं मिलेगी।
इस पर वह आदमी झटपट उस पेड़ के पास लौट आया और उसे काटकर चूल्हे में झोंकने लगा।
उस पेड़ की शरण में चार जीव रहा करते थे- एक मैना, एक तोता, एक बाघ और एक सूअर। चारों दिन-भर तो इधर-उधर रहा करते, परंतु सांझ होते ही उस पेड़ की शरण में आ जाया करते और वहीं रात गुजारा करते थे।
उस दिन भी सांझ होते-न-होते वे चारों एक-एककर वहां आने लगे।
सबसे पहले मैना आई। उसने देखा कि पेड़ काट डाला गया है और चूल्हे में उसे झोंका जा रहा है। यह देखकर उस मैने को बहुत दुख हुआ। अपने शरणस्थल उस पेड़ को जलते हुए देख वह भी उस चूल्हे में कूद पड़ी। उससे कुछ शराब चू निकली।
उसके बाद तोता उस पेड़ के पास आया। उसने भी देखा कि पेड़ को काटकर चूल्हे में झोंका जा रहा है तो वह भी उसमें कूदकर जल-मर गया। शराब कुछ अधिक चू निकली।
उसके बाद बाघ उस पेड़ के पास आया और देखा कि उस पेड़ को काट डाला गया है और चूल्हे में झोंका जा रहा है। इस पर उस बाघ को भी बहुत दुख हुआ और वह भी उसी चूल्हे में कूदकर जल-मर गया। शराब अधिक चू निकली।
अंत में सूअर उस पेड़ के पास आया। उसने भी देखा कि पेड़ को काटकर चूल्हे में झोंका जा रहा है । इस पर वह भी बहुत दुखी हुआ और उसने भी उसी चूल्हे में कूदकर अपनी जान दे डाली। शराब बहुत अधिक चू निकला।
वह आदमी बहुत खुश हुआ। उसने ओझा को बधाई दी।
कहा जाता है कि उसी दिन से शराब में मैने, तोते, बाघ और सूअर के खूनों का असर व्याप गया है। इसीलिए जब शराब का पहला दोना ढलता है तब पीनेवाला मैने की तरह मीठी-मीठी बातें करने लगता है, वाह भई, शराब तो खूब बनी है, किसने इतनी अच्छी शराव बनाई है। इत्यादि। उसके बाद दूसरा दोना पीते-पीते वह तोते की तरह बातुनी हो जाता है, तीसरे दोने में वह मानो बाघ बन जाता है, बाघ की तरह ही गरजना दहाड़ना और दंभ मारना शुरू कर देता है। वह बात-वात में बिगड़ जाया करता है और समझने लगता है कि दुनिया में उससे बढ़कर कोई नहीं है। और, अंत में वह सूअर-जैसा बन जाता है। उसे न तो अपने तन-मन की सुध रहती है और न भले-बुरे का ज्ञान। वह जहां तहां गिरा पड़ा रहता है।
यही कारण है कि संताल लोगों के पुरखों में आज-कल की तरह बेहिसाव शराब पीने का चलन नहीं था।
-प्रीतिमा वत्स
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sahi,sundar katha
ReplyDeleteकहानी अचछी है। लेिकन इसे िसरफ संतालो के साथ जोड़ना ठीक नही। कयोंिक शराब अाज िजतनी संताल नही पीते है उससे कहीं जयादा अनय जाित के लोग पीते है और अनैितक कारय कर रहे है। संताल तो िसरफ बदनाम है।
ReplyDeleteकहानी अचछी है। लेिकन इसे िसरफ संतालो के साथ जोड़ना ठीक नही। कयोंिक शराब अाज िजतनी संताल नही पीते है उससे कहीं जयादा अनय जाित के लोग पीते है और अनैितक कारय कर रहे है। संताल तो िसरफ बदनाम है।
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