Sunday, December 7, 2008

क्यों पाला मुझे इतने जतन से माँ


कुछ आदिवासी (संथाली) संस्कार गीतों के अनुवादः

सौहर

"ओ मेरी माँ
क्यों रो रही हो तुम
दरवाजे पर,छाती पकड़कर !"

"क्यों न रोऊँ मैं, मेरी बेटी
पाला है बड़े यतन से
बड़े लाड़-प्यार से मैंने तुम्हें।"

"कटोरे के सुसुम गर्म पानी,
और अँगीठी की गर्म ताप से
की है मैंने परवरिश तुम्हारी।
क्या देने पराए घर तुझे
किए हैं मैंने इतने यतन?"

सौहर

पिताजी!
थी जब मैं छोटी
तो आए थे कुटुम्ब
-शादी के लिए मेरी,
पर कर दिया था आपने इन्कार!
बाबा, अब हो गई हूँ बड़ी मैं
कहाँ हैं मेरे बाराती, कहाँ हैं मेरे कुटुम्ब
बोलो अब क्या करूँ मैं?
पुआल की मोटी रस्सी की तरह
बना के रख दो 'खोचर' मुझे!

-प्रीतिमा वत्स

7 comments:

  1. marmik rachana bahut achhi lagi,

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  2. नदिया के दो तीर हैं बेटी का संसार।
    आधा जीवन इस तरफ आधा है उस पार।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।

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  4. lokjeevan me gey sohar sachmuch man baandh lete hain.
    Sundar anuwaad kiya hai aapne.

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  5. मन को छू लेने वाली रचनाएँ. खुशी हुई यह यह जान कर कि आज भूमण्डलीकरण की दुनिया में जब बेसोच आधुनिकता के सामने संस्कृतियाँ लुप्त हो रहीं हैं कोई भारत की इस लोकसम्पदा को खोने से पहले उसे सहेजने की कोशिश कर रहा है. शुभकामनाएँ.

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  6. अद्भुत रचना है दोनों . पीड़ा को जैसे शब्द मिल गये है .सार्थक लेखन है आपका .लिखती रहे

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  7. बढ़िया रचनाएँ । आपका परिचय पढ़कर अच्छा लगा ।
    घुघूती बासूती

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