Monday, December 1, 2008
लोककथा लछमी जगार की
बहुत पुराने समय की बात है, ऊपरपुर में मेंगराजा और मेंगिन रानी राज्य करते थे। मेंगिन रानी ने हठ किया कि बह मंजपुर देखना चाहती है। तब मेंगराजा के कहने पर अजगलभिमा ने मंजपुर जाकर उनके रहने के लिए वहाँ एक झोपड़ी बनवा दी। वे दोनों मंजपुर में आकर रहने लगे। उनके कोई संतान नहीं थी। मेंगिन रानी ने कई जतन किये किन्तु उन्हें संतान की प्रप्ति नहीं हुई। तब उसने मेंगराजा को अपने काका माहादेव के पास फल माँगने को भेजा। मेंगराजा कैलासपुर से आम का फल लेकर लौटे और उसे रोप दिया। समय आने पर वह फल अंकुरित होकर पौधा, और फिर पेड़ बना। उसमें फल लगे। मेंगराजा ने वह फल मेंगिन रानी को दिया। उस फल को खाने से मेंगिन रानी को पुत्री की प्राप्ति हुई। उसका नाम रखा गया, माहालखी। माहादेव का एक छोटा भाई था। उसका नाम था नरायन। वह बालिखंडपुर में रहता था। उसकी इक्कीस रानियाँ थीं। किन्तु इसके बावजूद वह माहालखी से विवाह करना चाहता था। उसने अपने भाई और भौजी से मिलने का बहाना बनाया और कैलासपुर आ गया। वहाँ से वह बेसरा (बाज पक्षी) लेकर आखेट के बहाने माहालखी की खोज में चला । उसका बेसरा छूट कर माहालखी के पास चला गया। वह बेसरा के बिना ही कैलासपुर लौटा। पारबती ने बेसरा के बारे में पूछा तो नरायन ने सारी घटना बतला दी और माहालखी के विवाह की जिद करने लगा। इस पर उसके भाई माहादेव ने पारबती से कहा कि उसकी बात मान लें और माहालखी के उसका विवाह करा दिया जाए। इस तरह उसका विवाह माहालखी के करवा दिया गया। विवाह के बाद वह माहालखी को लेकर बालिखंडपुर जाना चाहता था किन्तु पारबती ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया। तब वह अकेला ही बालिखंडपुर चला गया। किन्तु वहाँ उसका मन नहीं लगता था। तब वह एक रात कैलासपुर पहुँचा और माहालखी को उठा ले गया। वहाँ उसकी राधा-तुलसा- उडद,मूँग, चना, बडरा सरकों, तिल, राहेड़, कोसरा, सावाँ, वदई आदि इक्कीस रानियाँ माहालखी को तरह-तरह के कष्ट देने लगीं। सही बात से अनजान नरायन ने एक दिन माहालखी को बहुत पीटा। यहाँ तक कि उस पर लात भी उठाया। तब माहालखी अपमानित और दुखी होकर बालिखंडपुर छोड़कर इन्दरपुर चली गयी। उसके साथ-साथ नरायन राजा की सारी सम्पत्ति भी चली गयी। नरायन राजा अपनी रानियों के साथ भूखों दिन बिताने लगा। तब रानियों ने थक-हार कर कहा कि माहालखी के चले जाने के कारण ही उनके घर से धन-धान्य भी चला गया है। इसलिए वह माहालखी को खोज कर लाए। तब नरायन राजा माहालखी की खोज में भटकने लगा। बड़ी मुश्किल से इन्दरपुर में वह उसे देख सका। वहाँ किसी तरह उससे उसकी भेंट हुई। तब माहालखी ने रानियों द्वारा उस पर किए गए अत्याचारों की कथा सुनायी। नरायन राजा पछताने लगा और किसी तरह माहालखी को मनाकर बालिखंडपुर ले आया। उसके साथ ही धन-धान्य भी बालिखंडपुर लौट आए। इसी जगार के भीतर माहादेव द्वारा खेती करने और धान उपजाने की कथा भी आती है। इस कथा के अनुसार पहले धरती पर धान नहीं था। पारबती के कहने पर माहादेव ने खेती की और धान का उत्पादन किया। वही धान कैलासपुर से धरती पर आया और लोगों का भोजन बना।
इसा दिन की याद में लछमी जगार में खेतों से धान की बालियाँ लाकर नारियल के उसका विवाह रचाया जाता है।
-प्रीतिमा वत्स
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bahut achhi kahani lagi.
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