(इस लोकगीत
में शिव को मनाने की बात कही जा रही है। किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि मतवाले भोलेनाथ
की पूजा किस प्रकार की जाए कि वह मान जाएँ।)
किए लाए शिव
के मनाईब हो शिव मानत नाहीं ।-2
बेली-चमेली
शिव के मनहूँ न भावे -2
आक-धथूरा कहाँ
पाईब हो शिव मानत नाहीं।
किए लाए शिव
के मनाईब हो शिव मानत नाहीं।
पाट-पीताम्बर
शिव के मनहूँ न भावे-2
मृगा के छाल
कहाँ पाईब हो शिव मानत नाहीं।
किए लाए शिव
के मनाईब हो शिव मानत नाहीं ।-2
मेवा ओ मिश्री
शिव के मनहूँ न भावे-2
भांग के गोला
कहाँ पाईब हो शिव मानत नाहीं।
किए लाए शिव
के मनाईब हो शिव मानत नाहीं ।-2
गौरा औ संझा
शिव के मनहूँ न भावे-2
वन के जोगिनी
कहाँ पाईब हो शिव मानत नाहीं।
किए लाए शिव
के मनाईब हो शिव मानत नाहीं ।-2
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अर्थ-
शिव जी को कैसे
मनाएं,
वो मानते ही नहीं।
बेली चमेली
के फूल शिव के मन को नहीं भाते,
आक और धथूरा
कहाँ से लाऊँ । शिव मानते ही नहीं।
शिव जी को कैसे
मनाएं,
वो मानते ही नहीं।
अच्छे-अच्छे
वस्त्र,
पाट-पीताम्बर उनके मन को नहीं भाते,
मृग के छाल
मैं कहाँ से लाऊँ। शिव मानते हीं नहीं।
शिव जी को कैसे
मनाएं,
वो मानते ही नहीं।
मेवा और मिश्री
शिव जी के मन को ही नहीं भाते,
भांग का गोला
मैं कहाँ से लाऊँ। शिव मानते ही नहीं।
शिव जी को कैसे
मनाएं,
वो मानते ही नहीं।
गौरी माँ और
संध्या देवी में उनका मन नहीं रम रहा,
वन की योगिनी
मैं कहाँ से लाऊँ। शिव मानते ही नहीं।
शिव जी को कैसे
मनाएं,
वो मानते ही नहीं।
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