इन्द्रप्रस्थ के राजा युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया था। सम्पूर्ण आर्यावर्त के सभी जाने-माने राजा इस यज्ञ में आमंत्रित थे। अतिथि सत्कार के बाद अग्रिम पूजा की बारी आई। सबकी सहमति से युधिष्ठिर श्री कृष्ण की अग्रिम पूजा करने आगे बढ़े, ज्योहिं उन्होंने सोने के परात में प्रभु के चरण धोने के लिए रखे। पीछे से चेदि राजा शिशुपाल बहुत ही असभ्य तरीके से गरजता हुआ खड़ा हो गया और श्री कृष्ण के अग्रिम पूजा का विरोध करने लगा। पूरी सभा ने शिशुपाल को समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माना,और कृष्ण का अपमान करता रहा। कृष्ण चुपचाप सुन रहे थे और मन ही मन उसके सौ गलतियों के पूरा होने की प्रतिक्षा कर रहे थे, क्योंकि कृष्ण ने शिशुपाल की माँ को उसके किए सौ गलतियों के लिए माफ करने का वचन दिया था। जिस समय शिशुपाल की सौ गलतियाँ पूरी हो गई, कृष्ण ने कहा , बस शिशुपाल अब और नहीं। तुम्हारी गलतियाँ माफी की पराकाष्ठा पार कर चुकी हैं। क्रोध से काँपते कृष्ण के हाथ में सुदर्शन चक्र नाचने लगा। देखते ही देखते चक्र हाथ से निकला और शिशुपाल के सर को धड़ से अलग करता हुआ पुनः कृष्ण की अंगुलियों में समा गया। उसी समय कृष्ण की अंगुली पर द्रौपदी को खून नजर आया। वह घबरा गईं और अपना दुपट्टा फाड़कर कृष्ण की अंगुली पर बाँध दिया।
कृष्ण ने बड़े प्यार
से द्रौपदी से कहा, हे कृष्णा मेरी प्यारी बहन आज तुम्हारे प्यार का ऋणी हो गया
मैं तो। समय आने पर मैं तुम्हारे इस रक्षासूत्र के एक-एक धागे की कीमत अदा कर
दूंगा। जिसे युगों-युगों तक संसार याद रखेगा और आदर्श मानेगा।
उस वक्त किसी की समझ
में कुछ नहीं आया लेकिन द्रौपदी चीरहरण के समय कृष्ण ने जो किया वह तो सर्वविदित
है।
-प्रीतिमा वत्स
रोचक प्रसंग
ReplyDeletethank you sir
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