भारत में राजस्थान
की कठपुतली कला दुनिया भर में लोक कला के उत्कृष्ट नमूने माने जाते हैं। यहां की
कठपुतली का इतिहास काफी पुराना है और यहां की लोक कलाओं और कथाओं से
जुड़ा हुआ है परन्तु पिछले कुछ सालों से राज्य में परंपरागत रीति-रिवाजों पर
आधारित कठपुतली के खेल में काफी परिवर्तन हो गया है। पहले जहां यह खेल सड़कों,
गलियों में कुछ धार्मिक कहानियों को लेकर हुआ करता था, आज वहीं यह खेल रंग
आकार,गति और संगीत के संगम के साथ फ्लड लाइट्स की चाकचौंध रोशनी में बड़े-बड़े मंच
पर होने लगा है। धार्मिक तथा लैला-मजनूं आदि की कहानी को छोड़कर अब इन
कठपुतलियों
ने परिवार नियोजन,पौढ़ शिक्षा, राष्ट्रीय एकता के साथ-साथ हास्य व्यंग व मनोरंजन
कार्यक्रम दिखाना शुरू कर दिया है। बच्चों के लिए छोटे-छोटे शिक्षाप्रद कहानियां बहुत
ही खूबसूरती से कहे जाते हैं। पिछले दिनों इंडिया हैबिटेट सेंटर में 12वें इशरा
इंटरनेशनल पपेट फेस्टीवल में दुनिया के कई देशों ने हिस्सा लिया और एक से बढ़कर एक
कठपुतली के खेल दिखाए। नए-नए प्रयोगों से हाइटैक हो चुकी कठपुतली ने दर्शकों का
काफी मनोरंजन किया। इस कठपुतली उत्सव में एक ओर जहां भारत के परंपरागत कठपुतलियां
लोगों का मनोरंजन कर रही थीं, वहीं दूसरी ओर विदेशों से आए हुए कठपुतली कलाकार भी
लोगो का मनोरंजन करने में जुड़े हुए थे। स्पेन, यूके,
बुल्गारिया,आयरलैंड,इस्राइल,अजरबेजान आदि देशों ने हिस्सा लिया था। स्पेन की एक
कठपुतली कला के प्रदर्शन में बताई गई एक कहानी में,
मां बकरी को बाजार
जाना है और वह अपने बच्चों को चेतावनी देकर गई है कि वे किसी के लिए दरवाजा न
खोलें। फिर भी एक खूंखार भेड़िया घर में घुस जाता है और सारे बच्चों को खा जाता
है। लेकिन किसी तरह सबसे छोटा मेमना बच जाता है और वह अपनी मां के साथ सारे बच्चो
को भेड़िये के पेट से निकालने में मदद करता है। और वे भेड़िये का पेट उसके सो के
उठने से पहले पत्थरों से भर देते हैं। इससे वह भेड़िया नदी में गिर जाता है और
सारी बकरियों को भेड़िए से हमेशा के लिए छुट्टी मिल जाती है।
ऐसी बहुत सारी
कहानियां बताई गई जो मनोरंजक होने के साथ-साथ शिक्षाप्रद भी था। लेकिन राजस्थान के
कठपुतलियों की सुन्दरता का तो कोई जबाब ही नहीं। पूरण भट्ट के निर्देशन में आकार
पपेट थियेटर ग्रुप का फेमिली शो को भी दर्शकों ने काफी सराहा।
लकड़ी के छोटे-छोटे
टुकड़े और घर के फटे-पुराने कपड़ों में सजा गोटा और सितारे के संयोग से बनी
राजस्थान की कठपुतलियां हर किसी को मुग्ध करती हैं। आदिकाल से लेकर आज तक कठपुतली
कला में विविध रूपों में परिवर्तन होता आया है। यहां की कठपुतली कला को न केवल देश
में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रियता मिली है। परन्तु आजकल इस कला में आधुनिकता का
प्रवेश हो जाने के कारण उसके लौकिक स्वरूप में गिरावट आ गई है। यहां कई ऐसे परिवार
हैं जो पूरी तरह कटपुतली बनाने और उसका खेल दिखाकर जीविकोपार्जन करते हैं। इनकी
कमाई का एकमात्र यही साधन है परन्तु आज कठपुतली के घटते कद्रदानों की वजह से ये
परिवार अपने
पुश्तैनी धंधे को छोड़कर अन्य कामों की ओर आकृष्ट हो रहे हैं। कई लोग
मजबूर होकर खेल दिखाने के बजाए कठपरुतली बनाने तक ही अपना काम सीमित कर रहे हैं।
कठपुतली से जीविकोपार्जन करनेवाले इन परिवारों मे स्त्रियां और बच्चे कठपुतली की पोशाकें
तैयार करने और पुरुष कठपुतली का ढांचा बनाने, रंग करने और खेल दिखाने तथा इन्हें
बेचने का काम करते हैं। सारा दिन पूरा परिवार इस काम में तन-मन से लगा रहता है
परन्तु आज के बदलते माहौल में उनकी कला और उनकी मेहनत की कद्र घटती जा रही है।
हालांकि विदेशों में कठपुतली कला का महत्व इन दिनों बढ़ा है, लेकिन इसका काम यहां
बड़े इंपोरियम के विक्रेता ही कमाते हैं। जबकि कठपुतली बनाने वाले कलाकार इसे बहुत
ही कम दामों में बेचकर किसी तरह अपनी जिन्दगी बिताते हैं। काठ, चमड़े और कपड़े की
कठपुतली को अपने इशारों पर नचाकर लोगों का मनोरंजन करनेवाले कठपुतली के कलाकार इस
कला के घटते कद्रदानो की वजह से अपने पेशे को छोड़ने के लिए मजबूर हैं।
कई कठपुतली
वाले इस खेल की दुर्दशा से काफी दुखी हैं। वे कभी वक्त को कोसते हैं तो कभी सरकार
को। जब इनका दर्द हद से बढ़ जाता है तो ये कभी-कभी मुकद्दर को भी कोसने लग जाते
हैं। कुछ साल पहले तक देश-विदेश में शोहरत के झंडे गाड़ देने वाली कठपुतली कला आज
कद्रदानों की आस में है।
आलेख में प्रयुक्त चित्र विभिन्न देशों के कठपुतली कला के हैं। इन्हें पहचानने के लिए में क्रमशः इन देशों के नाम लिख रही हूं-
भारत, बुल्गारिया, स्पेन, यू.के., अजरबेजान, हांगकांग, इस्राइल।
(INDIA, BULGARIA, SPAIN, U.K., AZERBAIJAN, HONG KONG, ISRAEL.)
-प्रीतिमा वत्स
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