भोलाबाबा साजल हे बारात
औघड़दानी साजल रे बारात
के हर-हर बम-बम साजल रे बारात।
बसहा बईल केर पालकी बनावल
भूत-प्रेत संग साजल रे बारात
के हर-हर बम-बम साजल रे बारात।
जब बरियात दुआरी बिच पहुंचल
सखी सब देखनक हे जाई,
दस पांच सखी मिली आरती उतार गेली
नाग छोड़ल फुफ हे कार,
के भोला बाबा साजल रे बारात,
के हर-हर बम-बम साजल रे बारात।
मड़वा तोड़ब-लगहर फोड़ब
मेटी देब चारो मुख के दीप,
भोला बाबा साजल हे बारात
खिड़की के ओटे-ओटे गउरी विनती करै
सुनु शिव हमरो रे बचन।
तनि एक हे शिव भेष बदल करूँ।
देखत, नारीयर के लोग।
भोलाबाब साजल रे बारात
मड़वा जोड़ब, लगहर बइसाइब,
नेसी देब चारो मुख के दीप।
भोला बाब साजल रे बारात,
घर स बहार भेली मातु सुनयना
दुलहा देख गेली मातु सुनयना
देखी क नयना रे जुड़ाय
के भोला बाब साजल रे बारात,
के हर-हर बम-बम साजल रे बारात।...............................
अर्थ- अंगिका के इस गीत में भोलेबाबा के बाराती गमन की बात की गई है। बसहा बैल की पालकी पर शिव भस्म भभूति लगाकर बैठे हैं। बारातियों के रूप में भूत-प्रेत सब आगे-पीछे नाचते चले जा रहे है। जैसे ही बाराती दरवाजे पर लगती है, सखियां आरती उतारने के लिए सज संवर कर आती हैं। लेकिन नाग की फुंफकार सुनकर और शिव का ऐसा भयानक रूप देखकर दौड़कर भाग जाती है। शिव जी की योजना है कि जैसे ही मंडप पर पहुंचुंगा, पूरे मंडप को तहस-नहस कर सबको डरा दूंगा और चारमुख वाला दीप भी बुझा दूंगा। लेकिन पार्वती मां की विनती को सुनकर शिव अपना रूप बदल कर आते हैं और देखते हैं कि वहां तो मृत्युलोक के प्राणी सजे-संवरे शादी के उत्सव में घूम रहे हैं। यह देखकर शिव अपना इरादा बदल देते हैं और शांत मुद्रा में आ जाते हैं। मंडप को क्षत-विक्षत करने का विचार छोड़ देते हैं। चारमुख वाला दीपक जगमगा उठता है।
घर से जब माता सुनयना बाहर आती हैं तो अपने दामाद के शांत और सौम्य रूप के देखकर भावविभोर हो जाती हैं।
-प्रीतिमा वत्स
औघड़दानी साजल रे बारात
के हर-हर बम-बम साजल रे बारात।
बसहा बईल केर पालकी बनावल
भूत-प्रेत संग साजल रे बारात
के हर-हर बम-बम साजल रे बारात।
जब बरियात दुआरी बिच पहुंचल
सखी सब देखनक हे जाई,
दस पांच सखी मिली आरती उतार गेली
नाग छोड़ल फुफ हे कार,
के भोला बाबा साजल रे बारात,
के हर-हर बम-बम साजल रे बारात।
मड़वा तोड़ब-लगहर फोड़ब
मेटी देब चारो मुख के दीप,
भोला बाबा साजल हे बारात
खिड़की के ओटे-ओटे गउरी विनती करै
सुनु शिव हमरो रे बचन।
तनि एक हे शिव भेष बदल करूँ।
देखत, नारीयर के लोग।
भोलाबाब साजल रे बारात
मड़वा जोड़ब, लगहर बइसाइब,
नेसी देब चारो मुख के दीप।
भोला बाब साजल रे बारात,
घर स बहार भेली मातु सुनयना
दुलहा देख गेली मातु सुनयना
देखी क नयना रे जुड़ाय
के भोला बाब साजल रे बारात,
के हर-हर बम-बम साजल रे बारात।...............................
अर्थ- अंगिका के इस गीत में भोलेबाबा के बाराती गमन की बात की गई है। बसहा बैल की पालकी पर शिव भस्म भभूति लगाकर बैठे हैं। बारातियों के रूप में भूत-प्रेत सब आगे-पीछे नाचते चले जा रहे है। जैसे ही बाराती दरवाजे पर लगती है, सखियां आरती उतारने के लिए सज संवर कर आती हैं। लेकिन नाग की फुंफकार सुनकर और शिव का ऐसा भयानक रूप देखकर दौड़कर भाग जाती है। शिव जी की योजना है कि जैसे ही मंडप पर पहुंचुंगा, पूरे मंडप को तहस-नहस कर सबको डरा दूंगा और चारमुख वाला दीप भी बुझा दूंगा। लेकिन पार्वती मां की विनती को सुनकर शिव अपना रूप बदल कर आते हैं और देखते हैं कि वहां तो मृत्युलोक के प्राणी सजे-संवरे शादी के उत्सव में घूम रहे हैं। यह देखकर शिव अपना इरादा बदल देते हैं और शांत मुद्रा में आ जाते हैं। मंडप को क्षत-विक्षत करने का विचार छोड़ देते हैं। चारमुख वाला दीपक जगमगा उठता है।
घर से जब माता सुनयना बाहर आती हैं तो अपने दामाद के शांत और सौम्य रूप के देखकर भावविभोर हो जाती हैं।
-प्रीतिमा वत्स
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