Saturday, January 30, 2010
भिटौली की कथा
उत्तराखण्ड के करीब-करीब हर गाँव में भिटौली की कथा बहुत ही महत्वपूर्ण है। पहाड़ों पर चैत के महीने में एक चिड़िया कुई-कुई बोलती है। इसे घुघुती कहते हैं। भिटौली (उपहार) के साथ इसका मोहिल सम्बन्ध है। यह लोक कथा इस प्रकार है, एक गांव में देबुली नाम की लड़की रहती थी। उसका एक भाई था नरिया, देबुली अपने भाई को बहुत प्यार करती थी। एक दिन देबुली के पिता ने देबुली की शादी सात नदी, सात पहाड़ दूर एक गांव में तय कर दी। अपनी शादी की खबर और नरिया का बिछोह देबुली को खलने लगा। वह दिन-रात आंसू बहाती रहती। एक दिन विवाह का मुहूर्त आ ही गया। बारात आ गई। विदा होने पर उसका भाई नरिया यह विदाई सहन नहीं कर सका और खूब रोने लगा। तब दुल्हन बनी देबुली ने नरिया के आँसू पोछते हुए कहा कि रो मत भैया, जब चैत्र का महीना नजदीक आयेगा, उस समय तू मुझसे मिलने आना व भिटौली लाना, भैया मैं ससुराल में तेरी राह देखूंगी। यह सुनकर नरिया ने जैसे-तैसे अपने आंसू रोके और देबुली को विदा किया।
चैत्र का महीना आया। नरिया की माँ ने देबुली के लिए भिटौली तैयार की। एक बड़ी टोकरी में पूरी,सिंगल,मिठाई,फल,अक्षत-पिठ्या(रोली) के अलावा कपड़े-लत्ते रखे। नरिया से कहा- जा रे नरिया मेरी इकलौती प्यारी देबुली को भिटौली देकर आ। वो तेरी राह देखती होगी। भिटौली की आस लगाये होगी और बहुओं की भिटौली आते देखकर रोती होगी। बेटा तू आज ही चला जा और अपनी देबुली दीदी को भिटौली देकर उसकी नाराजगी दूर कर आ।
नरिया ने खुशी-खुशी नये कपड़े कुर्ता, पाजामा, टोपी पहनी। अपनी दीदी के लिए चूड़ी,माला,बिन्दी खरीद कर लाया। सिर पर भिटौली की टोकरी रखकर "चैत को भेटणा दीदी चैत को भेटणा" (मैं आ रहा हूँ) गुनगुनाते रवाना हुआ। जाते-जाते उसे चार पांच दिन लग गये। सात नदी पार, सात पहाड़ पार, सात पट्टी पार उधर उसकी दीदी भाई की राह देखती रही। चलते-चलते नरिया शुक्रवार की रात देबुली के ससुराल पहुंचा। उसने देखा देबुली दीदी सो चुकी है। नरिया ने सोई हुई देबुली के पैर छुए व भिटौली की टोकरी एक ओर रख दी। थका मांदा, भूखा-प्यासा नरिया थोड़ी ही देर में सो गया। सुबह उजाला होने में काफी देर थी। नरिया की नींद खुल गई। उसने देखा देबुली गहरी नींद में सोई हुई है। अचानक उसे ख्याल आया कि आज शनिवार है। शनिवार का दिन शुभ काम के लिए अशुभ होता है। यह उसकी माँ ने समझाया था कि शनिवार का दिन पड़ेगा तो देबुली के घर मत जाना। ये सब सोचते-सोचते नरिया ने निर्णय लिया और अक्षत-पिठ्या निकाल कर देबुली दीदी के पैर छुए, भेटणे की टोकरी वहीं रखकर बिना देबुली को बताए निकल पड़ा घर की ओर। जब काफी दूर निकल गया तब देबुली की नींद खुली। नींद खुलने से पहले वह एक सपना देख रही थी कि उसका भाई आया है भेटणा लेकर और उसके पैर छू रहा है। सपना टूटा देबुली की नींद खुल गई, उसने देखा सचमुच रंग-बिरंगी भेटणे की टोकरी है। वह चौंक गई,पास में भाई को ना देखकर नरिया-नरिया चिल्लाती हुई दूर-दूर तक अपने भाई को देखने गई। पर भाई का कहीं पता न चल सका। बड़े अफसोस के साथ कहने लगी-हाय मेरा भाई। इतनी दूर से आया, मैं सोती रही। भूखा-प्यासा भिटौली लेकर आया, मैं सोती रही। यह सोचती-सोचती देबुली भीतर-ही-भीतर मन को बहलाती आंसू बहाती। देबुली का मन इस आघात को बर्दाश्त नहीं कर पाया। भाई व भिटौली की भेंट का दुःख सम्भाल नहीं सकी देबुली और उसके प्राण निकल गए।
यह भिटौली का त्योहार कुमाऊं क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण है। आज भी इस त्योहार में लड़कियों को सम्मानपूर्वक मायके बुलाकर भिटौली(उपहार) दी जाती है। जो बहन दूर है, आने में असमर्थ है, भाई उसे वहीं भिटौली पहुँचाता है।
-प्रीतिमा वत्स
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यह कुमाऊँ की प्रसिद्ध लोक कथा है. गत वर्ष मार्च में मैंने इसे इस रूप में प्रस्तुत किया था.
ReplyDeleteप्रतिमा जी कुमाऊ के लोकरंगों में "काफल पाको" बोलने वाली चिड़िया जो वसंत ऋतु में घाटियों में बोलती है..उसे कभी सुना है ?...वह भी एक अनोखा रंग है !
ReplyDeleteप्रतिमा जी....
ReplyDeleteलोक कथा को पढ़ना अच्छा ही नहीं लगा बल्कि आत्मतृप्ति का अनुभव महसूस हुआ| मेरी शुभकामनाये....