Tuesday, July 21, 2009
वाद्ययंत्र झारखंड के
नृत्य,गीत और संगीत झारखंड वासियों के प्राण हैं। यह जनजातीय जीवन की सामूहिक यात्रा के अभिन्न अंग हैं उनसे ही लोक जीवन को अभिव्यक्ति मिलती है। पर्व-त्योहार जातीय संस्कृति के अंग हैं। इन त्योहारों में देर रात तक झारखंड के गांवों में सामूहिक नृत्य, गीत और संगीत की धूम मची रहती है। इन समारोहों में मांदर, नगाड़ा, ढोलकी, बांसुरी और झांझ जैसे वाद्य यंत्रों के सुर-ताल की लहर आनंद को दोगुना कर देती है। कुछ वाद्य यंत्रों के बारे में मैं यहां बताने की कोशिश कर रही हूँ।
केंदरी- संथालों का यह प्रिय वाद्य है। इसे झारखंडी वायलिन भी कहा जाता है। कछुए की खाल या नारियल के खोल से इसका तुम्बा बनाया जाता है। तुम्बा से बांस या लकड़ी का दंड जुड़ा रहता है। उस पर तीन तार लगे रहते हैं। घोड़े की पूछ के बाल से गज बनाया जाता है। गज और दंड के तारों की रगड़ से स्वर निकलते हैं।
एकतारा- एकतारा को गुपिजंत्र भी कहा जाता है। इसमें एक ही तार होता है। झारखंड क्षेत्र में अक्सर फकीर या साधु लोग इस वाद्य का प्रयोग करते हैं। भजन, भक्तिगीत गाने वाले साधु-संन्यासियों की पहचान एकतारा और उसकी आवाज से ही होती है। इसके नीचे का हिस्सा खोखली लौकी या लकड़ी का बना होता है और उसका मुंह चमड़ा से मढ़ा रहता है। गायक को एकतारा से आधार स्वर मिलता है।
भुआंग- भुआंग संथालों का प्रिय वाद्य है। दशहरा के समय दासांई नाच में वे भुआंग बजाते हुए नृत्य करते हैं। यह तार वाद्य है। इसके बावजूद इसमें ऐसे अधिक स्वर निकलने की गुंजाइश नहीं रहती है। इसमें धनुष और तुम्बा होता है। इसमें तार को ऊपर खींचकर छोड़ देने से धनुष-टंकार जैसी आवाज निकलती है।
बांसुरी- सुषिर वाद्यों में बांसुरी या आड़बांसी झारखंड में काफी लोकप्रिय हैं। डोंगी बांस से सबसे अच्छी बासुरी बनायी जाती है। यह बांस पतला और मजबूत होता है। बांसुरी में कुल सात छेद होते हैं सबसे ऊपर वाले छेद में फूंक भरी जाती है।
सानाई- बांसुरी की तरह ही सानाई (शहनाई) भी झारखंड में लोकप्रिय है। यह यहां का मंगल वाद्य भी है। पूजा, विवाह आदि मौकों पर इसे बजाया जाता है। साथ ही छऊ,नटुआ, पइका आदि नृत्यों में भी सानाई बजायी जाती है। दस इंच का सानाई में लकड़ी का नली होती है। उसमें छह छेद होते हैं। इसके एक सिरे पर ताड़ के पत्ते की पेंपती होती है और दूसरे सिरे पर कांसे की धातु का गोलाकार मुंह होता है। पेंपती से फूंक मारी जाती है। लकड़ी के छेदों पर उंगलियां थिरकती हैं तो अलग-अलग स्वर निकलते हैं कांसे के मुंह की वजह से आवाज तेज और तीखी होती है, जिसे दूर-दूर तक सुनी जा सकती है।
सिंगा- भैंस की सींग से सिंगा बनाया जाता है। इसके नुकीले सिरे से फूंक मारी जाती है। दूसरा सिरा चौड़े मुंह का होता है और वह आगे की ओर मुड़ा रहता है छऊ नाच में इसका उपयोग किया जाता है। शिकार के वक्त पशुओं को खदेड़ने के लिए इसे बजाया जाता है। पशुओं पर नियंत्रण के लिए चरवाहे लोग भी सिंगा बजाते हैं।
मदनभेरी- यह एक सहायक वाद्य है। इसे ढोल,सानाई,बांसुरी आदि के साथ बजाया जाता है। छऊ नृत्य,विवाह समारोह आदि में भी इसे बजाया जाता है। इसमें लकड़ी की सीधी नली होती है, जिसके आगे पीतल का मुंह रहता है। करीब चार फीट लम्बे इस वाद्य में कोई छेद नहीं होता । इसलिए फूंक मारने पर इससे एक ही स्वर निकलता है।
इसके अतिरिक्त निशान, शंख आदि भी झारखंड में बजते हैं। शंख मंगल वाद्य हैं। पहले उसका उपयोग संदेश देने के लिए भी होता है।
मांदर- मांदर झारखंड का प्राचीन और अत्यंत लोकप्रिय वाद्य है। इसे यहां लगभग सभी समुदाय के लोग बजाते हैं। यह पाश्वमुखी वाद्य है। लाल मिट्टी के बने मांदर का गोलाकार ढांचा अंदर से खोखला होता है। इसके देने तरफ के खुले मुंह बकरे की खाल से ढंके रहते हैं। मांदर की आवाज गूंजदार होती है। नाच के वक्त उसे बजाने वाला भी घूमता-थिरकता है। इसके लिए वह रस्सी के सहारे मांदर को कंधे से लटका लेता है।
ढोल- मांदर के साथ झारखंड में ढोल भी अवश्य ही बजाया जाता है। यह आम,कटहल या गमहर की लकड़ी से बनता है। इसमें भी अंदर से खोखला करीब दो फीट लम्बा ढांचा होता है। इसके भी दोनों किनारे गोलाकार होते हैं। दोनों किनारों की तुलना में बीच का हिस्सा कुछ उभरा हुआ होता है। इसके भी मुंह बकरे का खाल से ढंके रहते हैं। इसे हाथ तथा लकड़ी दोनों तरह से बजाया जाता है।
धमसा- यह विशालकाय वाद्य है। इसका मांदर, ढोल आदि मुख्य वाद्यों के सहायक वाद्य के रूप में इस्तोमाल किया जाता है। इसकी आकृति कड़ाही जैसी होती है। इसका ढांचा लोहे की चद्दर से तैयार किया जाता है। इसे लकड़ियों के सहारे बजाया जाता है। इसकी आवाज गंभीर और वजनदार होती है। छऊ नृत्य में धमसा की आवाज से युद्ध और सैनिक प्रयाण जैसे दृश्यों को साकार किया जाता है।
-प्रीतिमा वत्स
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kafi achcha likha hain aapne in lokvadyo ke bare me.aneko shubhkamnaye
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लाग पर आया, बहुत सुन्दर और सराहनीय कार्य कर रही हैं आप,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद.
जानकारियों से भरपूर आलेख - एक सराहनीय प्रयास आपका।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत शुक्रिया इस जानकारी के लिए। यहाँ रहते हुए भी इनके बारे में कभी जानने का अवसर नहीं मिला। अगर सभी वाद्य यंत्रों के चित्र भी उपलब्ध होते तो आपके विवरण से उसको जोड़ कर देखने से समझने में और सुविधा रहती।
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