Sunday, January 6, 2008
स्वस्तिक का सफर
स्वस्तिक का अर्थ होता है- कल्याण। कल्याण शब्द का उपयोग तमाम सवालों के एक जवाब के रूप में किया जाता है। शायद इसलिए भी यह निशान मानव जीवन में इतना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
कभी पूजा की थाली में, कभी दरवाजे पर, वेदों-पुराणों में प्रयुक्त होने वाला सर्वश्रेष्ठ पवित्र धर्मचिह्न के रूप में प्रयुक्त स्वस्तिक चिह्न आज फैशन की दुनिया में भी शुमार होता जा रहा है। अब यह पूजा की थाली से उठकर घर की दीवारों तथा सुंदरियों के परिधानों में सजने लगा है।
स्वस्तिक चिह्न का डिजाइन इजिप्सन क्रास, चाइनीज ताउ, रोसीक्रूसियंस और क्रिश्चियन क्रास से मिलता जुलता है। विभिन्न आकृतिओं से मिलने वाला यह चिह्न हर युग में अपना अलग-अलग महत्व भी रखता है। सनातन धर्म और जैन धर्म हो या बौद्ध धर्म, हर धर्म और युग में अपनी महत्ता के साथ स्वस्तिक उपस्थित है।
ईसा पूर्व में स्वस्तिक आकृति के दायें और बायें पक्ष से आदमी लापरवाह थे। उस समय इस रहस्यमय आकृति की गंभीरता से लोग बेखबर थे। तब यह धार्मिक रूप से दो सिद्धान्तों के विकास और विनाश को दर्शाता था। स्वस्तिक का महत्व समाज और धर्म दोनों ही स्थानों में है। भारतवर्ष में एक विशाल जनसमूह स्वस्तिक निशान का उपयोग करता है। कोई इसे सजाने के तौर पर तो कोई इसका उपयोग धर्म और आत्मा को जोड़कर करता है। दक्षिण भारत में जहां इसका उपयोग दीवारों और दरवाजों को सजाने में किया जाता है, वहीं पूर्वोत्तर राज्यों में इस आकृति को तंत्र-मंत्र से जोड़कर देखा जाता है। भारत के पूर्वी क्षेत्रों में इस आकृति को एक पवित्र धार्मिक चिह्न के रूप में माना जाता है। स्वस्तिक संस्कृत का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है- कल्याण। कल्याण शब्द का उपयोग तमाम सवालों के एक जवाब के रूप में किया जाता है। शायद इसलिए भी यह निशान मानव जीवन में इतना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
वेदों में स्वस्तिक चिह्न के बनावट की व्याख्या विभिन्न अर्थों में की गई है। कभी इसके चारों भागों को समाज के चार वर्ण के रूप में माना गया है। कभी इसकी चारों भुजाओं को विष्णु के चार भुजा के रूप में माना गया है जो विकास और विनाश के बीच संतुलन बनाकर सृष्टि को चला रहे हैं। कई बार स्वस्तिक के निशान हमें भ्रम में भी डाल देते हैं। पौराणिक काल में जहां इसका उपयोग धर्म के प्रतीक चिह्न के रूप में किया जाता था, वहीं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी की नाजी पार्टी के लोग स्वस्तिक के निशान को बहुत ही महत्वपूर्ण एवं संभावनाओं से भरा हुआ माध्यम मानते थे। वहीं आज यह स्वस्तिक सुंदरियों के परिधानों और आभूषणों तक पहुंच गया है। अर्थात कई पड़ावों से गुजर चुका है -स्वस्तिक का सफर।
-प्रीतिमा वत्स
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Swastik ka matalb hota hai sarvamangla, isliye aap ka mangal hi mangal
ReplyDeletebut naziyon ka Swastik Sidha nahi tha.
ReplyDeleteSwastik ke mamle main nazi bahut he worng the, hamne unki kai english film dekhi hai, is pavitra pratik ke part koi adar ke bhav nahi hai, ( jaise nukte se khuda, Juda ho jata hai, usi tarah Swastik ke Angle badalne se uska meaning hi change ho gaya )
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