आदि शक्ति मां भगवती ही ऐसी एक मात्र पूज्यनीया हैं जो संसार के समस्त सांसारिक सुखों को प्रदान करती हुई अपने भक्तों पर कृपा करती हैं और अंत में उन्हें मुक्ति भी देती हैं। अतः मानव को चाहिए कि शक्ति स्वरूपा देवी की साधना उपासना करें।
विश्व में बहुत सी जातियां हैं। ढेर सारे संप्रदाय हैं।कई धर्म हैं। विभिन्न भाषाएं हैं। बहुत से धार्मिक ग्रंथ हैं। इतना ही नहीं हर धर्म-संप्रदाय और जातियों में पूज्यनीय भावनाओं के आधार पर देवी-देवताओं की कल्पना की गयी है। ईश्वर, भगवान, अल्लाह, खुदा, गॉड, परमात्मा आदि नामों से ब्रह्म को, खुदा को पुकारा जाता है। किंतु यह जितने नाम हैं वे भाषा के आधार पर दिए गए हैं। यह बहस बहुत पुरानी पड़ गयी कि इस संसार को चलाने वाला कोई है ? इसका उत्तर सभी निकाल चुके हैं कि कोई अदृश्य शक्ति है जो इस सृष्टि के कण-कण का ठीक-ठीक समयानुसार चालन करती है। हम उसे गॉड कहें, खुदा कहें, परमात्मा कहें, ज्योति कहें, प्रकाश कहें या ज्ञान कहें।
परंतु इस बात को सभी धर्मों में माना गया है कि कोई तो अदृश्य शक्ति है जो हम सबको पैदा करती है,पोषण करती है और अंत में स्वरुप परिवर्तन कर देती है या विनष्ट कर देती है। भले ही यह शक्ति हमें दिखाई नहीं देती परंतु हमें उसका ज्ञान होता है। हम अपनी उपासना से उस शक्ति को महसूस कर सकते हैं। अपनी ऊर्जा को बढ़ा सकते हैं।
उसी शक्ति को हम निर्गुण रूप में मानें तो शक्ति और सगुण रूप में मानें तो जगदंबिका अर्थात् जगत जननी हैं।
सर्व देव मयी देवी सर्व देवीमयं जगत।
अतोSहं विश्वरूपां त्वां नमामि परमेश्वरीम्।।
सतयुग,त्रेता और द्वापर से लेकर आज के इस युग में भी देवी अपने भक्तों पर समान रूप से प्रसन्न होती रही हैं। परंतु हर युग की मांग अलग-अलग थी। पहले व्यक्ति, ईश्वर की शरणणागति मांगता था, भक्ति मांगता था और मुक्ति की इच्छा करता था। परंतु आज के युग में भौतिकता, सांसारिकता का मोह फंसा हुआ व्यक्ति जब साधना करता है तो उसकी साधना भी स्वार्थपूर्ण हो गयी है। फिर भी मां भगवती अपने भक्तों के स्वार्थ को पूर्ण करने की कृपा करती हैं जो उन्हें हृदय से पुकारता है उस पर प्रसन्न होकर उसे उसका मनचाहा सुख प्रदान करती हैं। शीघ्र ही सिद्धि देती हैं।
इसीलिए कहा गया है कि कलयुग में मां रूप में देवी की शक्ति की उपासना शीघ्र अभीष्ट फल देती है। क्योंकि आदि शक्ति मां भगवती ही ऐसी एक मात्र पूज्यनीया हैं जो संसार के समस्त सांसारिक सुखों को प्रदान करती हुई अपने भक्तों पर कृपा करती हैं और अंत में उन्हें मुक्ति भी देती हैं। अतः मानव को चाहिए कि शक्ति स्वरूपा देवी की साधना उपासना करें।
शक्ति साधना कई प्रकार से की जाती रही है। वैदिक शक्ति साधना,तांत्रिक शक्ति साधना और भक्ति मार्गीय शक्ति साधना।
उपरोक्त साधनाओं में सांसारिक जीवन जीने वाले व्यक्ति को भक्ति मार्ग की साधना को अपनाना चाहिए। साधारण मनुष्य वैदिक तथा तांत्रिक विधि से देवी की न उपासना कर सकता है, न साधना कर सकता है। ये दोनों मार्ग कठिन एवं तपस्या करने के समान है। अतः खुद को मां का बेटा मानकर भक्त मानकर, सेवक, दास, पुजारी मानकर शक्ति उपासना करना चाहिए। शक्ति को यदि शक्ति भी न मानें , केवल मां माने, स्वामिनी माने तो सर्वश्रेष्ठ साधना होगी।
देवी के किसी भी रूप-नाम को या हर रूप-नाम को माता के समान पूजे, मां मानकर उपासना करें तो मानव का पूर्ण कल्याण मां के हाथों निश्चय है। वो अपने भक्तों की सच्ची पुकार की इस कलयुग में भी अनसूना नहीं कर सकती हैं।
जो शक्ति,ब्रह्मा,विष्णु और महेश आदि समस्त देवताओं की मां हैं जिनसे सारी सृष्टि का जन्म हुआ है वही शक्ति हमारी भी मां है और मां कभी अपने बालक का बुरा नहीं सोच सकतीं, वह सदैव अपने बेटों का हित चिंतन ही करेगी। अतः उसी मां की साधना उपासना हमें करनी चाहिए।
-प्रीतिमा वत्स