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बाद के दिनों में दशरथ मांझी कबीरपंथी हो गये थे और वे नशाखोरी के खिलाफ अभियान चलाने लगे थे. इसके अलावा उन्होंने साफ-सफाई को भी लेकर अभियान शुरू किया था. अपने समाज के लोगों से वे लगातार अनुरोध करते थे कि गंदगी के बीच में न रहें. घर के आसपास साफ-सुथरा माहौल बसायें. मगर लोग नहीं माने. ऐसे में वे अपने भाइयों के साथ गेहलोर मुख्य बस्ती से एक-डेढ़ किमी दूर आकर बस गये. जिस टोले को कुछ ही साल पहले दशरथ नगर का नाम दिया गया है.
2012 के दिसंबर में मैं वहां गया था. वहां यह देखकर मैं हैरान रह गया कि जो
टोला दशरथ मांझी ने साफ-सफाई की जिद की वजह से बसाया था वह काफी गंदा था.
लोग फिर से गंदगी के आसपास रहने लगे थे. उस टोले में भी मुझे कई लोग नशे के
आदी मिले. यानि महज पांच साल में लोग दशरथ मांझी की सीख को भूलने लगे थे.
हालांकि उनका पुत्र इन व्यसनों से दूर लगता था. मगर उसे उम्मीद रहती है कि
दशरथ मांझी के नाम पर सरकार को जितनी सहायता देनी चाहिये थी वह नहीं दी गयी
है.
उस टोले में कुछ सरकारी हैंडपंप लगे थे, मगर वाशर खराब होने की
वजह से बंद पड़े थे और लोग गंदे कुएं का पानी पीने को विवश हो गये थे.
मैंने उनसे पूछा कि आप लोग उस दशरथ मांझी के वंशज हो जिसने पहाड़ तोड़कर
रास्ता बना दिया, मगर आप हैंडपंप का वाशर तक नहीं बदल सकते और गंदा पानी पी
रहे हो. मुझे लगा कि लोगों को मेरी यह बात पसंद नहीं आयी.
Report- Pushyamitra, Photographs- Pushyamitra.
Presented by - Pritima vats.
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