कथा पुरानी है....जुए से जुड़ी है। जुए के खेल की वजह से पार्वती जी ने शंकर जी को यह शाप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ हमेशा उनके सिर पर बना रहेगा। नारद जी को शाप दिया कि तुम धूर्तता करते हो, अतः कभी एक स्थान पर दो घड़ी के लिए भी जमकर नही बैठ सकोगे। भगवान् विष्णु को शाप दिया कि यही रावण तुम्हारा परम शत्रु होगा। रावण को शाप दिया कि तुम्हारा विनाश यही विष्णु करेंगे। कार्तिकेय को शाप दिया कि तुम कभी जवान नहीं होगे।
एक बार शंकर जी ने पार्वती से जुआ खेलने का अभिलाशा की। संयोगवश खेल में शंकर जी अपना सब कुछ हार गए और पार्वती ने उनसे उनका सब सामान हीं नहीं उनका वाहन-नन्दी, व्याध्र चर्म, सर्प आदि सब कुछ ले लिया। शंकर जी को इससे ग्लानि हुई । वे उदास होकर पत्तों के वस्त्र पहन कर गंगा नदी के तट पर चले गए। कार्तिकेय को जब पिता की चिन्ता का पता लगा ते उन्होंने कारण पूछा। शंकर जी ने जब सबकुछ बताया तो वे सब वस्तुएँ वापस लेने के लिए माता के पास वापस आए और जूए के लिए कहा। इस बार पार्वती जी हार गईं और कार्तिकेय जी शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। पार्वती जी को अब चिन्ता होने लगी क्योंकि पराजित भी हुईं और शंकर जी भी चले गए। उसी समय गणेश जी उनके पास पहुँचे। पार्वती जी को गणेश जी विशेष प्रिय थे। अतः पार्वती जी ने अपना दुख उनसे कह दिया। इसबार गणेश जी अपने पिता से जुआ खेलने पहुँचे। वे जीत गए और आकर अपने विजय की सूचना अपनी माता को दी। पार्वती जी प्रसन्न हुईं परंतु बोली तुम्हे अपने पिता को लेकर आना चाहिए था।
गणेश जी पिता की खोज में निकल पड़े। शंकर जी से उनकी भेंट हरिद्वार में हुई। वे कार्तिकेय तथा विष्णु भगवान के साथ इधर-उधर घूम रहे थे। वे पार्वती जी से बहुत नाराज थे और उनके पास नहीं जाना चाह रहे थे। इसलिए गणेश जी के आने से वे प्रसन्न नहीं हुए। शंकर जी की इच्छा को जानकर उनके भक्त रावण ने बिल्ली का रूप धारणकर गणेश जी के वाहन चूहे को डरा दिया। चूहा गणेश जी को गिराकर अपनी जान लेकर भागा। तब गणेश जी अपना भारी-भरकम शरीर लेकर धीरे-धीरे चलने लगे। इधर शंकर जी की इच्छा से विष्णु भगवान ने पासा का रूप धारण किया। इसी वीच गणेशजी ने शंकर जी के समीप पहुँचकर माता का सन्देश कहा। तब महादेव ने उनसे कहा कि हमने नया पासा बनवाया है, यदि तुमाहारी माँ फिर से खेलने के लिए राजी हों तो मैं चल सकता हूँ। गणेश जी ने जब आश्वासन दिया तब शंकर जी पार्वती जी के पास अपने दल-बल के साथ वापस आए। शंकर जी ने आते हीं पार्वती से खेलने के लिए कहा और अपने नये पासे की चर्चा की। पार्वती जी ने हँस कर कहा आपके पास है क्या चीज जिससे खेला जाएगा। यह सुनकर शंकर जी चुप हो गए। नारद जी अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हे दे दी। इस बार महादेव हर बार जीतने लगे। एक- दो पासे के बाद गणेश जी को उनके कपट का पता चल गया और उन्होने अपनी माँ को यह बात बता दी। पार्वती जी को बहुत क्रोध आ गया । रावण ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उनका क्रोध शांत नहीं हुआ और उन्होंने शंकर जी को यह शाप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ हमेशा उनके सिर पर बना रहेगा। नारद जी को शाप दिया कि तुम धूर्तता करते हो, अतः कभी एक स्थान पर दो धड़ी के लिए भी जमकर नही बैठ सकोगे। भगवान् विष्णु को शाप दिया कि यही रावण तुम्हारा परम शत्रु होगा। रावण को शाप दिया कि तुम्हारा विनाश यही विष्णु करेंगे। कार्तिकेय को शाप दिया कि तुम कभी जवान नहीं होगे।
पार्वती का शाप सुनकर सभी लोग चिन्तित हो उठे। तब नारद जी ने अपनी सरल और हँसने-हँसाने वाली प्रकृति से सवका मनोरंजन किया। वे नाचने-कूदने और गाने-बजाने लगे। नारद की इस सूझ पर पार्वती जी का भी क्रोध दूर हो गया। नारद पर परम प्रसन्न होकर वह उनसे वरदान मांगने को कहने लगी। नारद जी ने कहा वरदान तो मैं तभी लूंगा जब सबको मिलेगा। पार्वती जी सहमत हो गईं। तब शंकर जी ने मांगा कि आज कार्तिक मास की शुक्ल प्रतिपदा है, अतः आज के दिन जो कोई जूआ मे विजयी हो वह वर्ष भर सदा विजयी रहे। विष्णु भगवान ने कहा कि मैं चाहे कोई छोटा काम करूँ या बड़ा सब पूरा हो। कार्तिकेय ने कहा यदि मुझे बालक ही बना रहना है तो मेरी इच्छा यही है कि मुझे विषय-वासना का संसर्ग न हो और सदा मेरा मन तपस्या और साधना में लीन रहे। रावण ने वेदों की सुविस्तृत व्याख्या का वरदान मांगा और शिवजी की अविचल भक्ति प्राप्त करने की प्रार्थना की। गणेश जी ने सब से प्रथम पूजा प्राप्त करने का वरदान मांगा। सबसे अन्त में नारद ने देवर्षि होने की इच्छा प्रकट की। पार्वती जी ने सबकी मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया, जिससे सभी प्रसन्न हो गए।
-प्रीतिमा वत्स
एक बार शंकर जी ने पार्वती से जुआ खेलने का अभिलाशा की। संयोगवश खेल में शंकर जी अपना सब कुछ हार गए और पार्वती ने उनसे उनका सब सामान हीं नहीं उनका वाहन-नन्दी, व्याध्र चर्म, सर्प आदि सब कुछ ले लिया। शंकर जी को इससे ग्लानि हुई । वे उदास होकर पत्तों के वस्त्र पहन कर गंगा नदी के तट पर चले गए। कार्तिकेय को जब पिता की चिन्ता का पता लगा ते उन्होंने कारण पूछा। शंकर जी ने जब सबकुछ बताया तो वे सब वस्तुएँ वापस लेने के लिए माता के पास वापस आए और जूए के लिए कहा। इस बार पार्वती जी हार गईं और कार्तिकेय जी शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। पार्वती जी को अब चिन्ता होने लगी क्योंकि पराजित भी हुईं और शंकर जी भी चले गए। उसी समय गणेश जी उनके पास पहुँचे। पार्वती जी को गणेश जी विशेष प्रिय थे। अतः पार्वती जी ने अपना दुख उनसे कह दिया। इसबार गणेश जी अपने पिता से जुआ खेलने पहुँचे। वे जीत गए और आकर अपने विजय की सूचना अपनी माता को दी। पार्वती जी प्रसन्न हुईं परंतु बोली तुम्हे अपने पिता को लेकर आना चाहिए था।
गणेश जी पिता की खोज में निकल पड़े। शंकर जी से उनकी भेंट हरिद्वार में हुई। वे कार्तिकेय तथा विष्णु भगवान के साथ इधर-उधर घूम रहे थे। वे पार्वती जी से बहुत नाराज थे और उनके पास नहीं जाना चाह रहे थे। इसलिए गणेश जी के आने से वे प्रसन्न नहीं हुए। शंकर जी की इच्छा को जानकर उनके भक्त रावण ने बिल्ली का रूप धारणकर गणेश जी के वाहन चूहे को डरा दिया। चूहा गणेश जी को गिराकर अपनी जान लेकर भागा। तब गणेश जी अपना भारी-भरकम शरीर लेकर धीरे-धीरे चलने लगे। इधर शंकर जी की इच्छा से विष्णु भगवान ने पासा का रूप धारण किया। इसी वीच गणेशजी ने शंकर जी के समीप पहुँचकर माता का सन्देश कहा। तब महादेव ने उनसे कहा कि हमने नया पासा बनवाया है, यदि तुमाहारी माँ फिर से खेलने के लिए राजी हों तो मैं चल सकता हूँ। गणेश जी ने जब आश्वासन दिया तब शंकर जी पार्वती जी के पास अपने दल-बल के साथ वापस आए। शंकर जी ने आते हीं पार्वती से खेलने के लिए कहा और अपने नये पासे की चर्चा की। पार्वती जी ने हँस कर कहा आपके पास है क्या चीज जिससे खेला जाएगा। यह सुनकर शंकर जी चुप हो गए। नारद जी अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हे दे दी। इस बार महादेव हर बार जीतने लगे। एक- दो पासे के बाद गणेश जी को उनके कपट का पता चल गया और उन्होने अपनी माँ को यह बात बता दी। पार्वती जी को बहुत क्रोध आ गया । रावण ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उनका क्रोध शांत नहीं हुआ और उन्होंने शंकर जी को यह शाप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ हमेशा उनके सिर पर बना रहेगा। नारद जी को शाप दिया कि तुम धूर्तता करते हो, अतः कभी एक स्थान पर दो धड़ी के लिए भी जमकर नही बैठ सकोगे। भगवान् विष्णु को शाप दिया कि यही रावण तुम्हारा परम शत्रु होगा। रावण को शाप दिया कि तुम्हारा विनाश यही विष्णु करेंगे। कार्तिकेय को शाप दिया कि तुम कभी जवान नहीं होगे।
पार्वती का शाप सुनकर सभी लोग चिन्तित हो उठे। तब नारद जी ने अपनी सरल और हँसने-हँसाने वाली प्रकृति से सवका मनोरंजन किया। वे नाचने-कूदने और गाने-बजाने लगे। नारद की इस सूझ पर पार्वती जी का भी क्रोध दूर हो गया। नारद पर परम प्रसन्न होकर वह उनसे वरदान मांगने को कहने लगी। नारद जी ने कहा वरदान तो मैं तभी लूंगा जब सबको मिलेगा। पार्वती जी सहमत हो गईं। तब शंकर जी ने मांगा कि आज कार्तिक मास की शुक्ल प्रतिपदा है, अतः आज के दिन जो कोई जूआ मे विजयी हो वह वर्ष भर सदा विजयी रहे। विष्णु भगवान ने कहा कि मैं चाहे कोई छोटा काम करूँ या बड़ा सब पूरा हो। कार्तिकेय ने कहा यदि मुझे बालक ही बना रहना है तो मेरी इच्छा यही है कि मुझे विषय-वासना का संसर्ग न हो और सदा मेरा मन तपस्या और साधना में लीन रहे। रावण ने वेदों की सुविस्तृत व्याख्या का वरदान मांगा और शिवजी की अविचल भक्ति प्राप्त करने की प्रार्थना की। गणेश जी ने सब से प्रथम पूजा प्राप्त करने का वरदान मांगा। सबसे अन्त में नारद ने देवर्षि होने की इच्छा प्रकट की। पार्वती जी ने सबकी मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया, जिससे सभी प्रसन्न हो गए।
-प्रीतिमा वत्स