तुलसा महाराणी....अड़वो दीजै......गड़वो दीजै.....पाट पीतांबर दीजै.........तल जमना के तीर दीजै........घी को कोपौ दीजै.......बैकुंठ को वास दीजै.......राम लछमण को खांध दीजै.........मुख में तुलसी घट में राम.....
जल चढ़ाते समय तुलसी से वांछना की ये परंपरा सदियों पुरानी है। भारतीय लोक संस्कृति में सदियों से वृक्षों,वनस्पतियों तथा सृष्टि के अन्य अंगों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और तुलसी का स्थान सबसे ऊंचा है।
प्रत्येक हिंदू परिवार के घर-आंगन में तुलसी चौरा, गमले या क्यारियों में तुलसी का पौधा अवश्य लहलहाता हुआ मिलेगा। वेदों एवं धर्मशास्त्रों के अनुसार तुलसी का ना केवल औषधियुक्त पौधे के रूप में मूल्यांकन किया जाता है वरन् विष्णु के देवी प्रतिनिधि के रूप में आदरणीय भी मानी जाती है। विष्णु आयुर्वेद के आचार्य माने जाते हैं। धन्वन्तरि विष्णु के अवतार हैं। तुलसी में अनेक औषधीय गुण हैं। इसलिए तुलसी का विष्णुप्रिया होना स्वाभाविक है। इसी आधार पर तुलसी और विष्णु के विवाह की कल्पना की गई होगी। लेकिन कई आख्यानों में तुलसी को विष्णु की जगह कृष्णप्रिया भी माना जाता है। इटली से वृंदावन आकर भक्ति संगीत पर शोध कर रही सेलीना थीलमान बताती हैं, लोक मान्यता में लोग तुलसी का विवाह विष्णु के साथ ही मानते हैं, पर ब्रजक्षेत्र में श्रीकृष्ण के साथ तुलसी के विवाह का प्रचलन है। कथा है कि तुलसी के पिता ने जब अपनी पुत्री से भावी पति के बारे में पूछा था तो तुलसी ने कुछ लजाते और कुछ सकुचाते हुए श्रीकृष्ण का नाम लिया था, ' हे पिताजी । उगता हुआ सूर्य गर्म होता है, तथा चंद्र एक पखवारे का राजा। ब्रह्मा चार सिर वाले तथा विष्णु चार भुजा वाले हैं और शिव विष के साथ और गणेश सूंड़ वाले हैं। शुक्र एक आंख वाले, बुद्ध बुद्धिहीन, मंगल पीड़ादायक, शनि ग्रहों से घिरे और बृहस्पति शीतल हैं, इसलिए जग को आह्लादित करनेवाले बांसुरी वादक श्रीकृष्ण ही मेरे पति हैं।' अपनी बेटी का यह उत्तर सुनकर वह श्रीकृष्ण के यहां शादी का पैगाम लेकर गए और तुलसी का विवाह श्री कृष्ण के साथ हुआ। उसी दिन से तुलसी कृष्णप्रिया कहलाई। तुलसी के वृंदा नाम पर वृंदावन नाम पड़ा और वृंदावन कृष्ण चरित्र व रासलीलाओं का केंद्र बना।
-प्रीतिमा वत्स