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LOKRANG
Sunday, May 25, 2025
Tuesday, May 13, 2025
Saturday, January 21, 2023
Aangan me Tulsi Chaura (एंगना मॅ तुलसी चौरा)
Tuesday, November 1, 2022
JANANIYE HATHON MA CHAI LOK KE Dor (Angika)
Angika ma aalekh -
जनानिये हाथों मं छै लोक केरो डोर
आज के बदललो परिवेश मं यदि हम्म मोटो तौर पर एक नजर डालै छिये त एहनो
लागय छै कि ‘हाय रे बाप है त पूरा तरह सं विज्ञान युग होय गेलै।’ आरो वैज्ञानिक युग मं त हर चीज कॅ प्रमाण के कसौटी पर खरा उतरै ल
लागय छै जे कि लोक जीवन मं संभव नाय छै। लोक जीवन त मोटा-मोटी एक मौखिक आरो वाचिक
परंपरा पर आधारित छै। आरो एक पीढ़ी सं दोसरो पीढ़ी मं सुनी बुझी कं विरासत नाकी आगूं
बढ़लो जाय छै। है त होल्हों किताबी बात, हेकरा सं एकदम उलटा एक सच योहो छै कि
आभियो जौं तोहों गांवो घरो के रोजको जिनगी मं हुलकभौ त पता चलथौं कि लोक जीवन त
एकदमें नाय बदललो छै। है आपनो मजबूत जड़ो के साथं एकदम लहलहाय आरो फली-फूली रहलो
छै। लोक जीवन आरो लोक संस्कृति के है मजबूती के कारण जानै के कोशिश करभौ त जनानिये
हाथों म तोरा हेकरो डोर नजर ऐथों।
हर परंपरा हर संस्कृति क ओना त जीयै छै समाज के हर तबका के हर
आदमी,बूढ़ो,बच्चा। सभै के आपनो-आपनो भागीदारी रहै छै, जेकरा सभैं नं आपनो-आपनो
हिसाबों सं निभाय के कोशिश करै छै। लेकिन मुख्य भूमिका त जनानी ही निभाय रहलो छै। हेकरो
कई कारण होय ल पारैय छौ। रोजी-रोटी के खोज मं मरदाना सिनी त गांव जबार सं बाहर चलो
जाय छेलै आरो गामों मं रही जाय छेलै जनानी आरो बच्चा त परंपरा त जनानिये निभैतियै
नी। एक कारण हेकरो आरो नजर आबै छै कि शुरू सं हीं ज्यादातर घरेलू काम काज के
जिम्मेदारी जनानी के हीं हाथों मं रहै छै। मरदाना घरेलू कामों मं ज्यादा नाय पड़ैल
चाहे छै, भरसक यहू वास्तं सब जिम्मेदारी निभैते-निभैते जनानी सं अनजाने हीं एतना
महत्वपूर्ण काम होय गेलै।
लोक परंपरा आरो लोक विरासर
के एक पीढ़ी सं दोसरो पीढ़ी मं हस्तांतरित होय के क्रम मं कहियो- काल परिस्थिति
आरो माहौल के अनुसार कुछ लोक देवी-देवता या परंपरा के छवि कुछ मद्धिम पड़ी जाय छै।
कै बार कोय नया देवी-देवता के पूजा आरो नैम धरम सामना मं आबी जाय छै। 33 हजार
करोड़ देवी-देवता के मान्यता वाला लोक संसार मं है त संभव नाय छै नि की सब
देवी-देवता के पूजा-पाठ आरो मान्यता हर समय समान रूपो सं ही होय ल पारैय। यही
वास्तं शायद बेरा बखत के हिसाबो सं सब लोक देवी-देवता के पूजा पाठ आरो महत्ता कम
बेसी होतं रहै छै।
समय के साथं-साथं जग्घा पर भी बहुत कुछ निर्भर होय छै। कोय इलाका मं
बनदेवी माय के पूजा ज्यादा होय छै, कोय इलाका मं सती बिहुला माय के त कोय इलाका मं
कोयला माय के। यहा रंग अलग-अलग इलाका मं कुछ खास लोक देवी-देवता के पूजा प्रचलित
छै।
लेकिन पूजा चाहे कोय इलाका मं हुअ, भिनसरियां उठी क कार्तिक नहाना हुअ या सांझ के बाती दिखाना हुअ, पूजा के थाल ज्यादातर जनानीये हाथों मं नजर ऐथों। दक्खिन भारत मं भी यहा हाल देखलिऐ। सूर्योदय सं पहिनै उठी क पूरा घोर साफ-सुथरा करी क घरो के आगूं रंगोली जनानिये बनाय छै करीब-करीब सब घरो मं। राजस्थान के गामों घरो मं आभियो कोस-कोस भर दूर सं भिनसरियैं उठी क पियै के पानी लानना जनानीये के काम छै। जरूरत के साथं-साथं है वहां के परंपरा आरो संस्कृति के एक हिस्सा भी होय गेलो छै।
लाख पंडित पुरोहित रहै लेकिन गामो घरो मं आभियो कोय नेम धरम के बात पूछना हुअ त कोय बूढ़ो-बिरधो काकी या दादी के बात हीं पहिनै मानलो जाय छै। लोक साहित्य के एक बहुत बड़ो ज्ञानी पुरूख राजेन्द्र धस्माना जी न एक जगह कहनं छै कि, “साहित्य के असली जोड़ लोक मं छै आरो लोक स्त्री के उपस्थिति के बिना अधूरा छै। यै वास्तं साहित्य मं स्त्री के उपस्थिति क खोजै वाला क भी लोक साहित्य मं स्त्री क पहिने देखना चाहियो।” है त बिल्कुल सच बात छै कि परंपरा स लैक मानवीय रिश्ता तक सब स्त्री के जन्मजात गुण के तरह छै। जनानी के अति उदार स्वाभाव आरो सुख-दुख क बहुत करीब सं झेलै के कारण हीं सांस्कृतिक चेतना भी हुनका मं ज्यादा होय छै। भरसक यहा कारण छै कि जनानी लोक जीवन के अगुआई करै मं ज्यादा निपुण साबित होय छै। यही वास्तं लोक कथा, पहेली, फेकड़ा, लोकगीत आरो तमाम मौखिक सांस्कृतिक धरोहर क आत्मसात करै म आरो होकरा आगूं बढाय मं जनानी के हमेशा महत्वपूर्ण योगदान रहलो छै।
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Wednesday, October 26, 2022
Sunday, March 6, 2022
Tuesday, December 28, 2021
Lok Astha ka prateek Lukluki Gaon ka Saali Puja.
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झारखंड के आदिवासी समाज में कथा वाचन की परंपरा अब भी बनी हुई है। यहाँ पर पुरानी पीढी के लोग आज भी अपने बच्चो को कथा कहानी सुनाते हुए देखे जात...