Saturday, January 21, 2023

Aangan me Tulsi Chaura (एंगना मॅ तुलसी चौरा)

दुनिया के सब आपाधापी सॅ थकी क जबS दिन दुपहरिया घोर जाय छेलियै त एंगना मॅ तुलसी के लहलहैलो पौधा देखी क जी जुड़ाय जाय छेलै। जहिया सॅ महानगर मॅ रहैलS ऐलो छीं, हौ रंग लहलहैलो तुलसी देखय लS तरसै छीं। महानगर के एतना व्यस्त जीवन आरो ज्यादातर लोगो के मरुऐलो चेहरा देखी क बड़ी हताशा होय छै। यहाँ त तुलसी के पौधा भी बालकोनी के एक कोना मॅ पड़लो एक चुरू पानी के इन्तजार करतॅ रहै छै। हौ तुलसी जे खुद नाय खुश रहैलS पारी रहलो छै वॅ दोसरा क केना खुशी दै ल पारतै। करीब-करीब हर फ्लैट मॅ तुलसी के यहा हाल छै। तुलसी चौरा के त रिवाजे खतम होय गेलो छै यहाँ, कैन्हे कि नाय त आंगन छै नाय बरामदा जे आदमी एक टा चौरा बनाय ल पारतै। मजबूरी मॅ कन्हौं कोनो कोना मॅ एक गमला राखी क तुलसी लगाय लै छै लोगS। यहाँ केरो है हालत देखी क बार-बार गामों केरो तुलसी चौरा याद आबी जाय छै। कतना जीवन्त लागय छै हौ घोर जहाँ एंगना के ईशान कोण मॅ तुलसी चौरा रहै छै, आरो वै चौरा मॅ तुलसी के पौधा हलहलैतS रहै छै। एन्हों लागै छै कि घरो के हर सदस्य पर आपनों दुलार लुटाय रहलो छै। हमरा आय भी हौ दिन याद छै जबS हमरो माय करीब एक महीना कहीं बाहर रही क घोर ऐलो छेलै तॅ तुलसी के मुरझैलो पौधा देखी कॅ केतना उदास होय गेलो छेलै। कहियो गोस्सा नाय करै वाली माय हौ दिन करीब-करीब घरो के हर सदस्य पर नाराज होलो छेलै। दु-तीन दिन बाद जबS तुलसी हरियैलै तभी माय के चेहरा पर मुस्कान ऐलो छेलै। होकरो बादो स घरो के सब लोग कॅ है ताकीद करी देलो गेलै कि चाहे कुछ होय जाय तुलसी के ध्यान हमेशा राखलो जैतै। सांझ बेरा मॅ जेन्है तुलसी मॅ दीप जलै छेलै ऐन्हो लागै छेलै कि सच मॅ तुलसी माता चौरा मॅ आबी क बैठली छै। धर्म, आस्था आरो परंपरा के हिसाबो सॅ त तुलसी चौरा के स्थान महत्वपूर्ण छेबे करैय। आयुर्वेद के हिसाब सॅ भी तुलसी के पौधा के बहुत महत्व छै। आयुर्वेद के हिसाब स तुलसी आरो पीपल हीं ऐन्हों पौधा आरो पेड़ छै जे दिन-रात ऑक्सीजन छोड़ै छै। पीपल एतना बड़ो होय जाय छै कि आंगन मॅ लगाना मुश्किल छै। तुलसी के पौधा हर मौसम आरो हर तरह के मिट्टी मॅ आसानी सॅ लागी जाय छै। छोटो जगह मॅ भी हेकरा आसानी सॅ लगैलो जाय ल सकै छो। तुलसी के पौधा सॅ लैकS पत्ता, फूल, बीज सब बहुत गुणकारी मानलो जाय छै। यै वास्तॅ भी हर घर वास्तॅ तुलसी के पौधा एक जरूरी पौधा होय जाय छै। कुछ साल पहिने तक त बैसाख के महीना मॅ तुलसी के रक्षा वास्तॅ एक मिट्टी के घड़ा पौधा के उपरो पर लटकाय देलो जाय छेलै, जेकरा सॅ बूंद-बूंद पानी टपकतॅ रहै छेलै। घरो के हर सदस्य नहाय कॅ एक लोटा जल घड़ा मॅ जरूर डालै छेलै। ऐकरो दू फायदा त सीधा नजर आबै छै। एक त यही बहाना घरो के सब आदमी समय पर नाही लै छेलै आरो साथॅ-साथॅ तुलसी के पौधा भी धूप आरो गर्मी सॅ बचलो रहै छेलै। दुपहरिया मॅ जबॅ लू बरसै छै तबॅ है घड़ा के चलते एंगना मॅ थोड़ो त राहत जरूर महसूस होय छेलै। पहेलको जमाना मॅ जब घरो के कोय बूढ़ो-बुजुर्ग मरनास्न्न होय छेलै त हुनका तुलसी चौरा ल हीं लेटैलो जाय छेलै। यै उम्मीद सॅ कि शुद्ध हवा सॅ शायद कुछ देर आरो प्राण बची जाय, या शुद्ध हवा के संपर्क मॅ शरीर सॅ प्राण निकलै मॅ ज्यादा कष्ट नाय होतै। रोजी-रोटी के तलाश मॅ महानगर म रहना त मजबूरी होय गेलो छै। लेकिन आभियों तब गांव जाय छियै आरो आंगन मॅ तुलसी के लहलहैलो पौधा देखै छियै तS मोन गदगद होय जाय छै। सांझ के बेरा मॅ जब घरो के करीब-करीब सब लोग आंगन मॅ बैठी क गपशप करै छै आरो तुलसी के चौरा मॅ दीप जलै छै त एन्हों लागय छै कि तुलसी माय के आशीर्वाद पूरा परिवार पर बरसी रहलो छै। -प्रीतिमा वत्स

Tuesday, November 1, 2022

JANANIYE HATHON MA CHAI LOK KE Dor (Angika)

Angika ma aalekh - 

जनानिये हाथों मं छै लोक केरो डोर

आज के बदललो परिवेश मं यदि हम्म मोटो तौर पर एक नजर डालै छिये त एहनो लागय छै कि हाय रे बाप है त पूरा तरह सं विज्ञान युग होय गेलै। आरो वैज्ञानिक युग मं त हर चीज कॅ प्रमाण के कसौटी पर खरा उतरै ल लागय छै जे कि लोक जीवन मं संभव नाय छै। लोक जीवन त मोटा-मोटी एक मौखिक आरो वाचिक परंपरा पर आधारित छै। आरो एक पीढ़ी सं दोसरो पीढ़ी मं सुनी बुझी कं विरासत नाकी आगूं बढ़लो जाय छै। है त होल्हों किताबी बात, हेकरा सं एकदम उलटा एक सच योहो छै कि आभियो जौं तोहों गांवो घरो के रोजको जिनगी मं हुलकभौ त पता चलथौं कि लोक जीवन त एकदमें नाय बदललो छै। है आपनो मजबूत जड़ो के साथं एकदम लहलहाय आरो फली-फूली रहलो छै। लोक जीवन आरो लोक संस्कृति के है मजबूती के कारण जानै के कोशिश करभौ त जनानिये हाथों म तोरा हेकरो डोर नजर ऐथों।

हर परंपरा हर संस्कृति क ओना त जीयै छै समाज के हर तबका के हर आदमी,बूढ़ो,बच्चा। सभै के आपनो-आपनो भागीदारी रहै छै, जेकरा सभैं नं आपनो-आपनो हिसाबों सं निभाय के कोशिश करै छै। लेकिन मुख्य भूमिका त जनानी ही निभाय रहलो छै। हेकरो कई कारण होय ल पारैय छौ। रोजी-रोटी के खोज मं मरदाना सिनी त गांव जबार सं बाहर चलो जाय छेलै आरो गामों मं रही जाय छेलै जनानी आरो बच्चा त परंपरा त जनानिये निभैतियै नी। एक कारण हेकरो आरो नजर आबै छै कि शुरू सं हीं ज्यादातर घरेलू काम काज के जिम्मेदारी जनानी के हीं हाथों मं रहै छै। मरदाना घरेलू कामों मं ज्यादा नाय पड़ैल चाहे छै, भरसक यहू वास्तं सब जिम्मेदारी निभैते-निभैते जनानी सं अनजाने हीं एतना महत्वपूर्ण काम होय गेलै।

 लोक परंपरा आरो लोक विरासर के एक पीढ़ी सं दोसरो पीढ़ी मं हस्तांतरित होय के क्रम मं कहियो- काल परिस्थिति आरो माहौल के अनुसार कुछ लोक देवी-देवता या परंपरा के छवि कुछ मद्धिम पड़ी जाय छै। कै बार कोय नया देवी-देवता के पूजा आरो नैम धरम सामना मं आबी जाय छै। 33 हजार करोड़ देवी-देवता के मान्यता वाला लोक संसार मं है त संभव नाय छै नि की सब देवी-देवता के पूजा-पाठ आरो मान्यता हर समय समान रूपो सं ही होय ल पारैय। यही वास्तं शायद बेरा बखत के हिसाबो सं सब लोक देवी-देवता के पूजा पाठ आरो महत्ता कम बेसी होतं रहै छै।

समय के साथं-साथं जग्घा पर भी बहुत कुछ निर्भर होय छै। कोय इलाका मं बनदेवी माय के पूजा ज्यादा होय छै, कोय इलाका मं सती बिहुला माय के त कोय इलाका मं कोयला माय के। यहा रंग अलग-अलग इलाका मं कुछ खास लोक देवी-देवता के पूजा प्रचलित छै।

लेकिन पूजा चाहे कोय इलाका मं हुअ, भिनसरियां उठी क कार्तिक नहाना हुअ या सांझ के बाती दिखाना हुअ, पूजा के थाल ज्यादातर जनानीये हाथों मं नजर ऐथों। दक्खिन भारत मं भी यहा हाल देखलिऐ। सूर्योदय सं पहिनै उठी क पूरा घोर साफ-सुथरा करी क घरो के आगूं रंगोली जनानिये बनाय छै करीब-करीब सब घरो मं। राजस्थान के गामों घरो मं आभियो कोस-कोस भर दूर सं भिनसरियैं उठी क पियै के पानी लानना जनानीये के काम छै। जरूरत के साथं-साथं है वहां के परंपरा आरो संस्कृति के एक हिस्सा भी होय गेलो छै।

लाख पंडित पुरोहित रहै लेकिन गामो घरो मं आभियो कोय नेम धरम के बात पूछना हुअ त कोय बूढ़ो-बिरधो काकी या दादी के बात हीं पहिनै मानलो जाय छै। लोक साहित्य के एक बहुत बड़ो ज्ञानी पुरूख राजेन्द्र धस्माना जी न एक जगह कहनं छै कि, साहित्य के असली जोड़ लोक मं छै आरो लोक स्त्री के उपस्थिति के बिना अधूरा छै। यै वास्तं साहित्य मं स्त्री के उपस्थिति क खोजै वाला क भी लोक साहित्य मं स्त्री क पहिने देखना चाहियो। है त बिल्कुल सच बात छै कि परंपरा स लैक मानवीय रिश्ता तक सब स्त्री के जन्मजात गुण के तरह छै। जनानी के अति उदार स्वाभाव आरो सुख-दुख क बहुत करीब सं झेलै के कारण हीं सांस्कृतिक चेतना भी हुनका मं ज्यादा होय छै। भरसक यहा कारण छै कि जनानी लोक जीवन के अगुआई करै मं ज्यादा निपुण साबित होय छै। यही वास्तं लोक कथा, पहेली, फेकड़ा, लोकगीत आरो तमाम मौखिक सांस्कृतिक धरोहर क आत्मसात करै म आरो होकरा आगूं बढाय मं जनानी के हमेशा महत्वपूर्ण योगदान रहलो छै।

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 -प्रीतिमा वत्स

 

Tuesday, July 20, 2021

सूर्य को समर्पित एक अंगिका लोक गीत

 सोना के खड़ाम चढ़ी अइलै सुरुज देव,

खाड़ भेलैय मड़वा अँगनमा, हाथे सोवरणों केरो साट हो।

यही साटे मारवो रे भगता, हमरो भोजनमा देने जाहो हे।

कर जोरी ठाड़ो भेलै भगता जे सभे भगता,

तोहरो भोजनमा हो सूरुजदेव हलसी क दियबो,

हमरो आशिष देने जाह हो।

बाढ़ियो संतति, बाढ़ियो संपत्ति, बाढ़ियो कुल परिवार हो।

सूर्य को समर्पित इस अंगिका लोकगीत में यह वर्णन किया गया है कि सोने के खड़ाऊँ पहन कर सोने के रथ पर सवार सूर्य देव अपने भक्तों के पास आते हैं। दर्शन देने के उपरान्त भोजन की मांग करते हैं। भक्त जो उनके दर्शन पाकर हीं निहाल हो रहे हैं, कहते हैं कि हे प्रभू आपका भोजन तो हम खुश होकर देंगे। यह तो हमारे लिए सौभाग्य की बात है, आप कृपा करके हम भक्तों को आशीर्वाद देते जाइए।

सूर्य देव उन्हें आशीर्वाद देते हैं – तुम्हारी सम्पत्ति का विस्तार हो.......

तुम्हारे संतति (वंश) का विस्तार हो............

तुम्हारे कुल और परिवार का विस्तार हो..................।

(यह गीत हर शुभ अवसर पर खासकर शादी, उपनयन, मुंडन आदि पर सबसे पहले गाया जाता है।)

मूल अंगिका गायिका- दुर्गा देवी.

अनुवाद- प्रीतिमा वत्स


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Sunday, November 1, 2020

लोक देवी विषहरी (FOLK GODDESSES VISHAHRI)























प्रकृति की खूबसूरत गोद में बसा हुआ लोक जीवन प्रकृति से जितनी खुशी पाता है। उसी अनुपात में संघर्ष और परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। हर साल कई सौ आदमी सर्पदंश से मारे जाते हैं या इसकी भयानक पीड़ा को झेलते हैं। आज भी हमारे देश के अधिकांश ग्रामीण इलाकों में जड़ी-बूटी और देवी देवताओं की पूजा के सहारे लोग इस त्रासदी से निपटने की कोशिश करते हैं। सर्पदंश से बचने के लिए ग्रामवासी भैरव देव, नाग देवता, देवी विषहरी, मनसा देवी आदि लोक देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।

लोक देवी-देवताओं की पूजा और जड़ी-बूटियों के सहारे कितनी कामयाबी मिलती है यह तो विवाद का विषय है, लेकिन लोक में यह नुस्खा बहुत ही लोकप्रिय और सर्वमान्य है।

आज हम यहाँ पर विषहरी देवी के बारे में विस्तार से वर्णन करेंगे-

विषहरी बड़ दुलरी, विषहरी बड़ दुलरी।

कहाँ शोभे बाजू-बंदा कहाँ टिकुली-2

कहाँ शोभे विषहरी माय के लाल चुनरी

कहाँ शोभे विषहरी माय के लाल चुनरी,

विषहरी बड़ दुलरी, विषहरी बड़ दुलरी।

जैसा कि नाम से हीं स्पष्ट हो रहा है, विष का हरण करने वाली देवी हैं विषहरी। लोक में देवी विषहरी की पूजा बड़े ही धूमधाम के साथ किया जाता है। सर्परूप में होने के बावजूद विषहरी देवी की पूजा सर्पदंश की पीड़ा से मुक्ति के लिए की जाती है। बिहार और झारखंड में प्रायः हर गांव के मुहाने पर इनका मंदिर होता है। ग्राम देवता की सलाना पूजा के साथ इनकी भी पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि गांव के मुहाने पर इनकी उपस्थिति से गांव आपद-विपद से मुक्त रहता है। महामारी और प्राकृतिक आपदा से यह गांव वासियों की रक्षा करती हैं। गांव के लोग इनकी अराधना अपने हर शुभ कार्य के पहले करते हैं। शादी-ब्याह, उपनयन, मुंडन आदि में इनकी पूजा का विशेष विधान रहता है। इनकी पूजा का विधान भी कुछ अलग सा हीं है। इन्हें गाय का कच्चा दूध चढाया जाता है। साथ में कागज से बना एक खास तरह का मंजुषानुमा झांपी या मड़री चढ़ाया जाता है। सलाना पूजा के समय चावल को पीसकर गुड़ के साथ मिलाकर एक खास तरह का पीठा बनाया जाता है, जो इन्हें भोग लगता है। तब इनका आँचल भी बदला जाता है। घी में सिंदूर को मिलाकर इनका श्रृंगार किया जाता है। यह पूजा नियत भगत की पत्नी या उसी परिवार की कोई महिला करती है। पूजा में उपयोग किया गया  सिंदूर का घोल प्रसाद के रूप में वहाँ उपस्थित सभी सुहागन महिलाओं को भी पहनाया जाता है। साथ में कई तरह से देवी की स्तुति की जाती है, जिसे मनान गीत कहा जाता है-

पाँचो बहिनी कुमारी हे विषहरी

खेल चार चौमास हे विषहरी

वहाँ से चली भेली हे विषहरी

कणुआ घर आवास हे विषहरी।

कणुआ के बेटा उत्पाती हे विषहरी

लावा छीटी परैलखौं हे विषहरी-2

पांचो बहिनी कुमारी हे विषहरी

खेल चार चौमास हे विषहरी-2

देवी विषहरी की पूजा का महत्व सती बिहुला की पूजा में भी किया गया है।

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-प्रीतिमा वत्स


Aangan me Tulsi Chaura (एंगना मॅ तुलसी चौरा)

दुनिया के सब आपाधापी सॅ थकी क जबS दिन दुपहरिया घोर जाय छेलियै त एंगना मॅ तुलसी के लहलहैलो पौधा देखी क जी जुड़ाय जाय छेलै। जहिया सॅ महानगर ...