Friday, August 27, 2010

बुंदेली लोकगीतों में कुंआ पूजन


1.
ऊपर बादर घर्रायें हो,
नीचे गोरी धन पनिया खों निकरी।
जाय जो कइओ उन राजा ससुर सों,
अंगना में कुइया खुदाय हो,
तुमारी बहू पनिया खों निकरीं।
जाय जो कइऔ उन राजा जेठा सों,
अंगना में पाटें जराय हो,
तुमारी बहू पनिया खों निकरी।
जाय जो कइऔ उन वारे देउर सों,
रेशम लेजें भूराय हों
तुमारी बहू पनिया खों निकरी।
अरे ओ जाय जो कइऔ उन राजा ननदोउ सों,
मुतिखन कुड़ारी गढ़ाये हों,
तुमारी सारज पनिया खों निकरीं।
जाय जो कहियो उन राजा पिया सों,
सोने के घड़ा बनवायें हों,
तुमारी धनी पनिया खों निकरीं।

अर्थ- इस गीत में गोरी पानी भरने के लिए कुंए पर जा रही है, आसमान में बादल गरज रहे हैं। वह अपने परिवार के सभी लोगों से विनती करती है कि क्यूं न घर में हीं कुंआ खुदवा दिया जाए जिससे कि वह आराम से पानी भर सके। ससुर जी से कहती है वह कुंआ खुदवा दें, जेठ से कहती है कि वह आंगन में पाट लगवा दें। देवर से कहती है कि वह रेशम की डोरी ला दे।ननदोई से कहती है कि मोती की कुड़री गढ़ा दें। पति से कहती है कि वह मेरे लि सोने की कलश बनवा दें ।

2.
जल भरन जानकी आई तीं,
आई तीं मन भाई तीं।
कौन की बेटी कौन की बहुरिया
कौन की नारि कहाई तीं।
जल भरन जानकी आई तीं,
आई तीं मन भाई तीं।
जनक की बेटी दसरथ की बहुरिया
राम की नारि कहाई तीं।
जल भरन जानकी आई तीं,
आई तीं मन भाई तीं।

अर्थ- जल भरने के लिए जानकी जी आई थीं। वे सवके मन को बहुत भा गईं थी। वह किनकी बेटी किनकी बहू व किनकी पत्नी थीं। वे राजा जनक की पुत्री, राजा दशरथ की पुत्रवधु और श्रीराम की पत्नी थीं।
-प्रीतिमा वत्स
(फोटोग्राप्स मैंने नेट से लिया है)

Thursday, August 5, 2010

अंगिका की लोरी


झूल-झूल, नूनू झूले झूल-झूल।
बांस ऊपर पर सुग्गा झूल
अपनी महलियां नूनू झूल।
सुगवा कहे म सरोवर जाउं
नूनू कहे हम ननिहर जाउं।
ननिहर जाउं त की-की खाउं
दहि-चूड़ा मिठैईये खाउं
एक मन करे कि खईयै लौं
एक मन करे कि रुसियै जाउं।
पानी पियत नूनू पोखर जाए
पोखरी के बेंगवा ले लुलुआय
जहिया ऐते नूनू के माय
तहिया देबै जिमा लगाय।।
झूल-झूल नूनू झूले झूल-झूल।

अर्थ- बांस के ऊपर तोता झूल रहा है,
अपने महल में नन्हा बालक झूल रहा है,
तोते का मन है कि वह सरोवर जाए
बालक का मन है कि वह अपने ननिहाल जाए।
ननिहाल जाकर दही चूड़ा और मिठाई खाए।
खाए या रूठ जाए, सोच रहा है।
पानी पीने का मन हो तो पोखर की तरफ ही जाए।
पोखर के मेंढक उसे चिढ़ा रहे हैं
जब बालक की मां आएगी, तब मैं उसे बालक को सौंप दूंगा।।
-प्रीतिमा वत्स

Monday, August 2, 2010

लोकरंग मड़ई में

मड़ई का नया अंक आ चुका है। (मड़ई-2009) मड़ई के संपादक डॉ कालीचरण यादव हैं। जो वर्षों से लोक कला के उत्थान के लिए समर्पित भाव से कार्य कर रहे हैं।
मैं डॉ कालीचरण यादव जी को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती हूं परन्तु मुझे यह पत्रिका इतनी प्रभावी और मुकम्मल लगती है कि मैं इसे अपने छोटे से ब्लाग के माध्यम से आपलोगों की जानकारी में भी देना चाहती हूं। वैसे लोक और साहित्य की दुनिया में यह पत्रिका काफी चर्चित है। मुझे उम्मीद है कि कालीचरण जी को मेरी यह हिमाकत बुरी नहीं लगेगी।




Aangan me Tulsi Chaura (एंगना मॅ तुलसी चौरा)

दुनिया के सब आपाधापी सॅ थकी क जबS दिन दुपहरिया घोर जाय छेलियै त एंगना मॅ तुलसी के लहलहैलो पौधा देखी क जी जुड़ाय जाय छेलै। जहिया सॅ महानगर ...