Monday, August 27, 2018

मेहंदी परंपरा से श्रृंगार तक


सदियों से मेहंदी हमारे समाज में महिलाओं के श्रृंगार का एक अभिन्न हिस्सा माना जाता है। इसकी महत्ता तो इतनी है कि मेहंदी के बिना महिलाओं का श्रृंगार ही अधूरा माना जाता है। शादी हो या कोई तीज त्योहार भारतीय महिलाएं मेहंदी लगाना नहीं भूलती हैं। चाहे वो किसी शहर में रहती हों, गाँव में रहती हैं या विदेशों में। मेहंदी तो रचती ही है। पूरे देश में जहाँ मेहंदी सिर्फ श्रृंगार का एक साधन है वहीं ग्रामीण परिवेश में महिलाएं इसे परंपराओं के साथ-साथ संभावनाओं से जोड़कर भी देखती हैं। यूँ तो मेहंदी सालों भर लगाते हैं लोग पर कुछ महीनों में इसका कुछ ज्यादा ही महत्व माना जाता है। जैसे सावन की मेहंदी पति के नाम की मानी जाती है, भादो की मेहंदी भाई तथा माइके की खुशहाली के लिए लगाई जाती है। आश्विन के महीने में नवरात्रों के टाइम में लगाई जाने वाली मेहंदी को हर आकांक्षा पूरी करनेवाली मानी जाती है। भारतीय लोग परंपरा में कार्तिक के महीने में मेहंदी के लगाने का विधान नहीं है। इसे स्वास्थय और भाग्य दोनों के लिए हानीकारक माना जाता है। पुराने जमाने में ऐसा शायद इसलिए होता होगा क्योंकि उस समय लोग खेती-बारी पर ही निर्भर रहते थे और कार्तिक के महीने में घर में अनाज-पानी की दिक्कत होती थी। लोग बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा करते थे। ऐसे में मेहंदी लगाकर महिलाएँ खुशी नहीं मनाती होंगी। कालान्तर में यही विचार परंपरा का अंग बन गई। सावन में मेहंदी लगाना बहुत शुभ माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि तीज के पावन अवसर पर मेहंदी लगाने से पति-पत्नी का रिश्ता मजबूत होता है। वहीं मेहंदी के बारे में एक और मान्यता है कि जिसके हाथ की मेहंदी जितनी गहरी होती है, उसको उतना ही अपने पति और ससुराल का प्रेम मिलता है।

भादो के महीने में भी लोक में मेहंदी लगाना अनिवार्य माना गया है। ऐसी मान्यता है कि जिन महिलाओं या लड़कियों के भाई है उन्हें भादो के महीने में मेहंदी जरूर लगाना चाहिए। इससे भाई की बाधाएं दूर होती हैं, वह स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीता है साथ हीं बहनों के अरमान भी पूरे होते हैं, जो वे अपने भाईयों से संजो कर रखती हैं। प्राचीन काल में खासकर आदिवासी समाज में जब भाई किसी मुसीबत में हो या घर से बाहर हो, उसकी कोई खोज-खबर नहीं मिल रही हो तो बहने भगवान से पूजा-अर्चना करने के साथ-साथ भादो के महीने में हाथों में मेहंदी भी लगाती थीं। उनका यह मानना था कि मेहंदी के सूखने में जितनी देर लगेगी मेरे भाई की परेशानी भी उतनी देर में ठीक हो जाएगी। आज भी बिहार तथा झारखंड के कुछ हिस्सों में ये परंपरा देखने को मिल जाती है। यह परंपरा शायद इस बात को ध्यान में रखकर बनी होगी कि भादो को महीने में अक्सर बारिश होती रहती है और पुरूष घर से बाहर जंगल आदि में जाते थे, पहले यातायात के साधनों की कमी के चलते अक्सर वे बारिश में बाहर फंस जाते थे और घर आने में कई दिन भी लग जाते थे। घर में बच्चों का दिल बहलाने के लिए माँ मेहंदी लगा देती होंगी हाथों पर और कहती होंगी कि जबतक मेहंदी सूखेगी तुम्हारा भाई भी आ जाएगा। यही बहाना धीरे-धीरे एक परंपरा के रूप में बदल गई होगी।

आश्विन महीने का देवी पक्ष बहुत हीं शुभ होता है। हिन्दू समाज यह मान्यता है कि देवी इन दिनों धरती पर आती हैं और हमारे बीच रहती हैं। अतः इस दौरान लगाई जानेवाली मेहंदी भी काफी खास और शुभ फलदायी मानी जाती है।
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-प्रीतिमा वत्स
सभी चित्र नेट से साभार


Aangan me Tulsi Chaura (एंगना मॅ तुलसी चौरा)

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